चित्र आधारित सृजन
तिथि - 27/07/2020
विधा - कुण्डलिया
बैठी है नव यौवना , बीच नदी की धार ।
लिए कलश जल साथ में , खूब किया शृंगार ।
खूब किया शृंगार , केश में गजरा सोहे ।
ग्रीवा कुंदन हार , नैन का कजरा मोहे ।
करे पिया का ध्यान , मानिनी लगती रूठी ।
नहीं समय का भान , नदी में वामा बैठी ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़