वह लड़की, मेरे भीतर
अब भी जिन्दा है....
इठलाती,इतराती
बारिश मे भीगती
फूलों की खुशबू लेती
तितलियों को सहलाती
मनचाही ड्रेस पहनकर
दर्पण में अपना अक्स देखती
उड़ती फिरती रहती जैसे
मन से कोई परिंदा है ।।
इमली, आम के स्वाद लेती
चटखारे भरती ,उंगलिया चाटती
हर बात पर ठहाके लगाती
पानीपूरी ,चाट के मजे लेती
नैनो मे काजल लगाती
बालो पर गजरे सजाती
गम भुला कर खुशिया चुनती
उसकी ख्वाहिशें चुनिंदा हैं ।।
अल्हड़,शोख नदी सरीखी
मटकती,भटकती,खिलखिलाती
मिट्टी सी उसकी थाती
घुल जाती,मिट जाती
उम्मीदों के रेशमी धागों से
सपनों के ताने बाने बुनती
उसकी बुनावट पोशीदा है
नहीं अपने वजूद पर शर्मिंदा है ।।
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