Sunday, 23 July 2017

वापसी ( कहानी )

आज वर्षों बाद भैया का फोन आया ऋतु को  - घर आने का आग्रह कर रहे थे वो .....अचरज के साथ
ख़ुशियों से भर गया था उसका दिल ....प्रेम - विवाह
करने के बाद पहली बार उसके घर से कोई सम्वाद हुआ
था उसका । भैया तो खासकर इतने नाराज थे कि उन्होंने पापा के मौत की भी खबर नहीं दी थी उसे । अपनी पसंद से शादी करके वह  इतनी बेगानी हो गई थी कि उसके प्रिय पापा के अंतिम दर्शन के लिए भी उसे नहीं बुलाया गया । इतनी नफरत पता नहीं कहाँ से
जमा कर लिया था मन में सबने ...पता नहीं आज कैसे
सब कुछ भूल कर उसे बुलाया गया था , मन में हजारों सवाल उठ रहे
थे पर अपने प्रियजनों के पास जाने का मोह उसे खींच
रहा था । पता नहीं माँ कैसी होगी ....सात वर्ष हो गए उन्हें देखे ...इस बीच वह दो बच्चों की माँ  भी बन गई । घर
पर सन्देश भी भिजवाया पर कोई नहीं आया , इतने निष्ठुर कैसे हो गए सब ? उसने अपना हमसफ़र स्वयं
ढूंढ लिया था ...क्या यह इतनी बड़ी गलती थी ।
      रास्ते भर बचपन की बातें याद करती रही वह।दोनों भाइयों की जान थी वह...बड़े भैया तो उसकी जरूरतों
का खास ख्याल रखते थे ...छोटे भाई अमिश से उसका
कभी कभार झगड़ा भी हो जाता था पर भैया से कभी नहीं हुआ ।  भैया उसका हमेशा साथ देते थे चाहे उसकी मस्ती में या पापा की डांट से बचाने में । बारिश में भीगने को लेकर तो उसे बेहद डांट पड़ती थी क्योंकि उसे बहुत जल्दी सर्दी हो जाती थी । स्टेशन पर भैया उसे लेने आये थे , पर यह क्या चिर - परिचित रास्ते पर न जाकर उनकी गाड़ी  किसी और रास्ते पर मुड़ गई थी । भैया ये हम कहाँ जा रहे हैं , हमारे पुराने घर को क्या हुआ । वह सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी , पर भैया कुछ जवाब नहीं दे रहे थे । चल घर , फिर आराम से बातें करते हैं । भैया ने उसके परिवार और पति के बारे में कोई बात नहीं की थी न ही पूछा था कि वह कैसी है ? ससुराल में वह खुश है कि नही , उन्होंने एक बार भी नहीं पूछा था , शायद नाराजगी की बर्फ अब भी जमी हुई है , इतने दिनों के अलगाव के बाद की मुलाकात में वो गर्मजोशी नहीं थी कि वो पिघल जाये । घर पर पहुँचते ही भाभी ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया पर उसकी निगाहें तो माँ को ढूंढ रही थी ....क्या उन्होंने उसे माफ कर दिया होगा । पापा के बिना पहली बार उन्हें देखने वाली थी पता नहीं अब कैसी लगती होंगी.... गोरे से मुखड़े पर बड़ी सी लाल बिंदी । बिना  बिंदी के कैसी दिखती होंगी  माँ। सोते वक्त भी उनकी यह बिंदी उनके माथे से नही खिसकती थी ।
         यह घर शायद किराए का था , बहुत बड़ा नहीं था..बरामदा और उससे लगे हुए दो कमरे । बरामदे में
सोफा और एक दीवान लगा हुआ था । भाभी मुझे माँ
के कमरे में ले गई...बहुत कमजोर हो गई थी माँ ...उम्र
की लकीरें नजर आने लगी थीं उनके चेहरे पर ....मेरा चेहरा पकड़ कर रोने लगी थीं वो और उनका हाथ पकड़कर मैं भी । उन आँसुओं ने हमारे बीच के सात वर्षों के अबोलेपन को अपनी भाषा दे दी थी ...सारे गिले - शिकवों को धो दिया था । भाभी ने कहा - चलिये
आप  मुँह - हाथ धोकर थोड़ा फ्रेश हो जाइये , तब तक
मैं खाना लगाती हूँ ।
            माँ , हमारे पुराने घर को क्या हुआ ? आप लोगों को किराये के घर में क्यों रहना पड़ रहा है ? बताइये न माँ क्या हुआ? उसने एक साथ मन में उठने
वाले सारे प्रश्न पूछ डाले । तुम्हारे भैया को व्यापार में
बहुत नुक़सान उठाना पड़ गया इसलिये उस घर को
गिरवी रखना पड़ गया ...तेरी शादी के लिये तेरे पापा ने
एक एफ.डी.करवाई थी जो पाँच लाख की है । उसे
तुड़वाने के लिये तेरे दस्तखत चाहिये इसीलिये...अब उसकी समझ में  सारी बातें समझ आ गई थीं ....तो भैया ने आज उसे इसीलिये याद किया था वरना उनके
लिये तो वह मर ही गई थी । चेक लिये वह देर रात तक
बैठी रही थी...मन तो हो रहा था फाड़ के फेंक दे इस
चेक को जिसने रिश्तों के प्रति उसके मन में एक आस
जगा दी थी कि टूटे दिल फिर से मिल गए हैं ...पर नहीं
भैया ने आज भी उसे माफ नहीं किया है । यदि यह मजबूरी न होती तो वे शायद उससें कभी बात नहीं करते। वह फिर से उन रिश्तों को पाना चाहती थी जिसे
उसने खो दिया था...उनका वह पुराना घर जहाँ उनका
बचपन बीता ..जहाँ उसके पापा की ढेर सारी यादें थीं...
जहाँ भाई - बहन के प्यार - मनुहार के ढेरों किस्से थे...
तीज - त्योहारों पर की गई मस्तियां थीं ,वह उस घर को
बचाने के लिये सच में कुछ करना चाहती थी । उसने एक बड़ा फैसला कर लिया था ।
          दूसरे दिन सुबह उठ कर वह जल्दी से तैयार हो गई थी । उसने भैया से स्टेशन छोड़ने को कहा । भाभी
का मुँह फूला दिख रहा था ...शायद इसलिये कि मैंने
चेक पर दस्तखत कर  उन्हें वापस नहीं किया था....जाने के समय मैंने माँ के हाथ में दो चेक रख दिये
थे , एक जो उन्होंने मुझे दस्तख़त करने दिया था ..दूसरा
मैंने अपनी तरफ से दिया था पाँच लाख का ताकि घर को छुड़ाया जा सके ।  माँ के साथ - साथ भैया और भाभी  भी अवाक रह गए थे ..भाभी ने मेरे हाथ पकड़
लिये और रुँधे गले से बस इतना ही कह पाई ...जल्दी ही आना ऋतु । हाँ भाभी ...जरूर आऊँगी , पर अपने
उसी घर में , जहाँ मेरे भाइयों की खुशी बसती है ..मैंने
भैया की ओर देखते हुए कहा जिनकी बाहें मुझे अपने
गले लगाने के लिए फैली हुई थी ।आसमान पर खूब काले बादल घिर आये थे ...अबकी सावन जमकर बरसने वाला था ...पर उसे कोई फिक्र नहीं थी ...वह
इस बार सच में भीगना चाहती थी

          स्वरचित-   डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
  ☺️☺️☺️

Wednesday, 19 July 2017

स्मार्टनेस ( लघुकथा )

             सुमि एक स्मार्ट गृहिणी है । उसके पास अपनी
गाड़ी है , वह घर के लगभग सारे काम स्वयं ही कर लेती
है । पिछले सप्ताह मैं उसके घर गई थी ....शायद उसके
ससुराल के कोई रिश्तेदार हॉस्पिटल में भर्ती थे ...वह फोन में बात कर रही थी ....ओह ! मैं नहीं आ पाई , ये
टूर पर बाहर गए थे न.....।
          बात - बात पर मायके की दौड़ लगाने वाली और
हर काम आत्मविश्वास के साथ निपटाने वाली सुमि  का
यह बहाना मुझे पच नहीं रहा था । ससुराल का कोई काम आने पर वह निहायत घरेलू स्त्री बन जाती है , जो
अपने पति के बिना कहीं जा ही नहीं सकती । उसकी
सारी स्मार्टनेस पता नहीं , कहाँ चली जाती है ।
  स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , छत्तीसगढ़
😃😃

Tuesday, 18 July 2017

सफलता और सम्पूर्णता

आज समीर हॉस्पिटल में एडमिट हैं ,  कल उनके दांये कान का ऑपरेशन होना है । घर में उनका कुछ जरूरी सामान पैक कर मैं स्कूल चली गई थी , शुभी ने उन्हें अस्पताल  छोड़ दिया था । स्कूल से लौटते वक्त मैं हॉस्पिटल आई वे सो रहे थे ...बिना कुछ आहट किये मैं चुपचाप बैठ गई उन्हें देखते । थोड़ी देर बाद उठे तो ,उनके चेहरे पर नर्वसनेस साफ दिख रही थी । वे जानते थे यह एक माइनर ऑपरेशन है , फिर भी ऑपरेशन के नाम से डर तो लगता ही है। वे जब भी नर्वस होते हैं , अपनी दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ने लगते हैं । मुझे उनका ऐसा करना पता नहीं क्यों , अच्छा लगता है ।
शादी की शुरूआत के दिन याद आ जाते हैं । पहले शर्म
के कारण उनके चेहरे पर नजर तो नही उठती थी , पर
हाथों की उंगलियों को एक - दूसरे के अंदर क्रिष - क्रॉस
करते जरूर देख लेती थी । बीस वर्ष हो गए हैं हमारी
शादी को ...कभी - कभी क्या अक्सर मुझे ऐसा लगता
है कि वह  मेरे लिये ही बने हैं । मेरे अंदर जो कमियाँ हैं ,
वो उन बातों के उस्ताद हैं । मैं बहुत जल्दी परेशान हो
जाती हूँ , पर वे बहुत ही धैर्यवान हैं । कभी - कभी
बोलते भी हैं , मेरे दो नहीं तीन बच्चे हैं । तू भी कभी -
कभी बच्चे की तरह हरकतें करती है ...मैं उनके अधिकांश निष्कर्षों को बिना किसी बहस के स्वीकार कर लेती हूँ  क्योंकि मुझे वे मुझसे बेहतर जानते हैं , ऐसा मुझे लगता है । जीवन के हर पल को मैंने इतनी
खूबसूरती से जिया है , इसकी वजह समीर ही हैं । उनके विचारों , सोच का ही असर है कि मेरा जीवन
के प्रति नजरिया ही बदल गया है । मेरी महत्वाकांक्षा
पर सन्तुष्टि हावी हो गया है । हमारी महत्वाकांक्षा यदि
हमें आगे ले जाती है तो  बहुत कुछ छीन भी लेती है ,
इसलिये इसके पीछे भागते हुए अपना हानि - लाभ भी
देखते रहना चाहिए । कहीं हम अपनी मंजिल को पाने
के लिये अपनी सुख - शांति खो रहे हैं तो ऐसी सफलता
किस काम की । हम जिस स्थिति में जी रहे हैं , अगर
उससे सन्तुष्ट हैं  तो हमेशा सुखी रहेंगे । जो है , जैसा है
उसमें खुश रहो , जीवन के हर पल के मजे लो । दिखावे
के पीछे मत भागो । व्यक्ति  को यदि सफलता  और खुशी दोनों मिल जाये तो उससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता । पर जीवन की सम्पूर्णता  मिल जाये तो सफलता की आवश्यकता नहीं रह जाती । सम्पूर्णता के बिना सफलता अधूरी है ...पर सफलता मिल जाये  और जीवन सम्पूर्ण न लगे तो ऐसी सफलता किस काम की ।
     कई लोगों को  मैंने सफलता का अंदाज सुख - सुविधाओं  ,सम्पत्ति और जीवन में कुछ बड़ा बन   जाना ,बड़े ..शक्तिशाली पद पर आसीन होने से लगाते देखा है..शायद बहुत लोग ऐसा मानते हैं..अरे ! उसने तो बहुत तरक्की कर ली...बड़े - बड़े बंगले हैं उसके ; पर
हकीकत कुछ और हो सकती है। बड़े बंगले वाला यह सब पाकर सन्तुष्ट अनुभव कर रहा हो , कोई जरूरी नहीं। हो सकता है , व्यावसायिक मजबूरियों के कारण
वह कई खुशियों से वंचित हो , परिवार के लिये वह समय न दे पाता हो .. या अन्य कोई  असुविधा हो ..।
         " सब कुछ होते हुए भी कुछ न पाना और कुछ न होते हुए भी सब कुछ पा लेना " - जीवन ऐसा भी हो सकता है । आप अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ...
परिवार को समय देते हुए ...जीने की सुविधाओं को बढ़ा रहे हैं... जीवन के हर पहलू का आनन्द उठा रहे हैं ,
खुशियाँ बाँट रहे हैं और इन पलों को अपने जीवन की डायरी में संजो रहे हैं तो सच में आप खुशकिस्मत इंसान हैं ।जिंदगी की आवश्यकताएं हमें व्यस्त बनाये रखती हैं
उन्हें पूरा करते - करते कब जाने का समय आ जाता है,
पता ही नहीं चलता । कई बातों को हम भविष्य के लिए
टालते रहते हैं कि यह काम हम बाद में करेंगे...बस इसके बाद.. इसके बाद ...जो कभी नहीं आ पाता । न
जाने कितनी ख्वाहिशें मन में दबाए जीते रहते हैं हम..
सिर्फ शुरुआत करने की देर रहती है , बाद में महसूस
होता है कि क्यों इस काम को करने में देर कर दी । काश ! पहले ही कुछ प्रयास कर लिया होता । न जाने
कितनी प्रतिभाएं इस सही शुरुआत न हो पाने के कारण
दम तोड़ देती हैं । अपने - आपको , अपनी क्षमताओं को सही समय में पहचान लेना  सफलता की प्रथम सीढ़ी है ।