आज वर्षों बाद भैया का फोन आया ऋतु को - घर आने का आग्रह कर रहे थे वो .....अचरज के साथ
ख़ुशियों से भर गया था उसका दिल ....प्रेम - विवाह
करने के बाद पहली बार उसके घर से कोई सम्वाद हुआ
था उसका । भैया तो खासकर इतने नाराज थे कि उन्होंने पापा के मौत की भी खबर नहीं दी थी उसे । अपनी पसंद से शादी करके वह इतनी बेगानी हो गई थी कि उसके प्रिय पापा के अंतिम दर्शन के लिए भी उसे नहीं बुलाया गया । इतनी नफरत पता नहीं कहाँ से
जमा कर लिया था मन में सबने ...पता नहीं आज कैसे
सब कुछ भूल कर उसे बुलाया गया था , मन में हजारों सवाल उठ रहे
थे पर अपने प्रियजनों के पास जाने का मोह उसे खींच
रहा था । पता नहीं माँ कैसी होगी ....सात वर्ष हो गए उन्हें देखे ...इस बीच वह दो बच्चों की माँ भी बन गई । घर
पर सन्देश भी भिजवाया पर कोई नहीं आया , इतने निष्ठुर कैसे हो गए सब ? उसने अपना हमसफ़र स्वयं
ढूंढ लिया था ...क्या यह इतनी बड़ी गलती थी ।
रास्ते भर बचपन की बातें याद करती रही वह।दोनों भाइयों की जान थी वह...बड़े भैया तो उसकी जरूरतों
का खास ख्याल रखते थे ...छोटे भाई अमिश से उसका
कभी कभार झगड़ा भी हो जाता था पर भैया से कभी नहीं हुआ । भैया उसका हमेशा साथ देते थे चाहे उसकी मस्ती में या पापा की डांट से बचाने में । बारिश में भीगने को लेकर तो उसे बेहद डांट पड़ती थी क्योंकि उसे बहुत जल्दी सर्दी हो जाती थी । स्टेशन पर भैया उसे लेने आये थे , पर यह क्या चिर - परिचित रास्ते पर न जाकर उनकी गाड़ी किसी और रास्ते पर मुड़ गई थी । भैया ये हम कहाँ जा रहे हैं , हमारे पुराने घर को क्या हुआ । वह सवाल पर सवाल पूछे जा रही थी , पर भैया कुछ जवाब नहीं दे रहे थे । चल घर , फिर आराम से बातें करते हैं । भैया ने उसके परिवार और पति के बारे में कोई बात नहीं की थी न ही पूछा था कि वह कैसी है ? ससुराल में वह खुश है कि नही , उन्होंने एक बार भी नहीं पूछा था , शायद नाराजगी की बर्फ अब भी जमी हुई है , इतने दिनों के अलगाव के बाद की मुलाकात में वो गर्मजोशी नहीं थी कि वो पिघल जाये । घर पर पहुँचते ही भाभी ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया पर उसकी निगाहें तो माँ को ढूंढ रही थी ....क्या उन्होंने उसे माफ कर दिया होगा । पापा के बिना पहली बार उन्हें देखने वाली थी पता नहीं अब कैसी लगती होंगी.... गोरे से मुखड़े पर बड़ी सी लाल बिंदी । बिना बिंदी के कैसी दिखती होंगी माँ। सोते वक्त भी उनकी यह बिंदी उनके माथे से नही खिसकती थी ।
यह घर शायद किराए का था , बहुत बड़ा नहीं था..बरामदा और उससे लगे हुए दो कमरे । बरामदे में
सोफा और एक दीवान लगा हुआ था । भाभी मुझे माँ
के कमरे में ले गई...बहुत कमजोर हो गई थी माँ ...उम्र
की लकीरें नजर आने लगी थीं उनके चेहरे पर ....मेरा चेहरा पकड़ कर रोने लगी थीं वो और उनका हाथ पकड़कर मैं भी । उन आँसुओं ने हमारे बीच के सात वर्षों के अबोलेपन को अपनी भाषा दे दी थी ...सारे गिले - शिकवों को धो दिया था । भाभी ने कहा - चलिये
आप मुँह - हाथ धोकर थोड़ा फ्रेश हो जाइये , तब तक
मैं खाना लगाती हूँ ।
माँ , हमारे पुराने घर को क्या हुआ ? आप लोगों को किराये के घर में क्यों रहना पड़ रहा है ? बताइये न माँ क्या हुआ? उसने एक साथ मन में उठने
वाले सारे प्रश्न पूछ डाले । तुम्हारे भैया को व्यापार में
बहुत नुक़सान उठाना पड़ गया इसलिये उस घर को
गिरवी रखना पड़ गया ...तेरी शादी के लिये तेरे पापा ने
एक एफ.डी.करवाई थी जो पाँच लाख की है । उसे
तुड़वाने के लिये तेरे दस्तखत चाहिये इसीलिये...अब उसकी समझ में सारी बातें समझ आ गई थीं ....तो भैया ने आज उसे इसीलिये याद किया था वरना उनके
लिये तो वह मर ही गई थी । चेक लिये वह देर रात तक
बैठी रही थी...मन तो हो रहा था फाड़ के फेंक दे इस
चेक को जिसने रिश्तों के प्रति उसके मन में एक आस
जगा दी थी कि टूटे दिल फिर से मिल गए हैं ...पर नहीं
भैया ने आज भी उसे माफ नहीं किया है । यदि यह मजबूरी न होती तो वे शायद उससें कभी बात नहीं करते। वह फिर से उन रिश्तों को पाना चाहती थी जिसे
उसने खो दिया था...उनका वह पुराना घर जहाँ उनका
बचपन बीता ..जहाँ उसके पापा की ढेर सारी यादें थीं...
जहाँ भाई - बहन के प्यार - मनुहार के ढेरों किस्से थे...
तीज - त्योहारों पर की गई मस्तियां थीं ,वह उस घर को
बचाने के लिये सच में कुछ करना चाहती थी । उसने एक बड़ा फैसला कर लिया था ।
दूसरे दिन सुबह उठ कर वह जल्दी से तैयार हो गई थी । उसने भैया से स्टेशन छोड़ने को कहा । भाभी
का मुँह फूला दिख रहा था ...शायद इसलिये कि मैंने
चेक पर दस्तखत कर उन्हें वापस नहीं किया था....जाने के समय मैंने माँ के हाथ में दो चेक रख दिये
थे , एक जो उन्होंने मुझे दस्तख़त करने दिया था ..दूसरा
मैंने अपनी तरफ से दिया था पाँच लाख का ताकि घर को छुड़ाया जा सके । माँ के साथ - साथ भैया और भाभी भी अवाक रह गए थे ..भाभी ने मेरे हाथ पकड़
लिये और रुँधे गले से बस इतना ही कह पाई ...जल्दी ही आना ऋतु । हाँ भाभी ...जरूर आऊँगी , पर अपने
उसी घर में , जहाँ मेरे भाइयों की खुशी बसती है ..मैंने
भैया की ओर देखते हुए कहा जिनकी बाहें मुझे अपने
गले लगाने के लिए फैली हुई थी ।आसमान पर खूब काले बादल घिर आये थे ...अबकी सावन जमकर बरसने वाला था ...पर उसे कोई फिक्र नहीं थी ...वह
इस बार सच में भीगना चाहती थी
स्वरचित- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
☺️☺️☺️