मालूम है टूटकर गिर जाएँगी ,
फिर भी कलियों को खिलने का
इन्तेजार होता है .......।
मालूम है गिरकर बिखर जायेंगे,
फिर भी काँच को ढलने का
इन्तेजार होता है .…...।
मालूम है वाष्प बन के उड़ जायेंगे
फिर भी बादल को बरसने का
इन्तेजार होता है...... ।
मालूम है शाम को डूब जाना है
फिर भी सूरज को निकलने का
इन्तेजार होता है.…... ।
मालूम है प्रभात आने पर छुप जाना है
फिर भी चाँद को उगने का
इन्तेजार होता है...... ।
मालूम है वक्त को ढल जाना है
फिर भी मुट्ठी में बाँधने का
प्रयास रहता है......।
मालूम है कल को बिछड़ जाना है
फिर भी सनम से मिलने का
इन्तेजार होता है....।
मालूम है पतझड़ को आना है
फिर भी वृक्ष पत्तियों से
गुलजार होता है…....।
मालूम है मिट्टी में मिल जाना है
फिर भी मनुज को इतना
अहंकार होता है.....।
मालूम है एक दिन मौत आनी है
फिर भी जिन्दगी के आने का
इन्तेजार रहता है.....।।
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Saturday, 26 November 2016
फिर भी
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