शाखों पर फूटे नव पल्लव ,
कलियों से खिले किसलय ,
आसमान में उड़ते परिंदे ,
कतारों में लग कर रहे सजदे ,
भवरों ने लो छेड़ा तान ,
कोयल की कूक ले लेती जान ,
सबके बदले अंदाज हैं ,
परिवर्तन के ये राज हैं ,
कही भीगी लकड़ी ,कही जलता अलाव है
इनका करें स्वागत यही बदलाव है ,
स्वीकार करें जो अपने हिस्से आया ,
सच है वो जो हमने पाया ,,
ख़ुशी अंतर्मन में पैठी है ,
क्या हुआ जो थोड़ी रुठी है ,
हर हाल में इसे मनाना है ,
विपरीत परिस्थिति में भी ढूढ़ लाना है ।।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Monday, 2 January 2017
नव पल्लव
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