Friday, 14 April 2017

मै धरती पर बोझ नहीं

नदी देती है जल,
वृक्ष देते है फल,
मै देती हूँ अपना सर्वस्व,
प्रकृति की तरह सबको
अपनाने में करती
कोई संकोच नहीं।
नारी हूँ मै,ऊर्जा का
एक अजस्त्र स्त्रोत,
मै धरती पर बोझ नहीं।
कर्म-क्षेत्र में डटी रही,
जीवन के हर मोड़ पर
निभाती आई अपना दायित्व
बेटी,बहन,पत्नी,मां बनकर
मै पोषिका,मै पालिका
फिर भी मेरी भ्रूण -हत्या
पर कोई रोक नहीं।।
नारी हूँ मै ऊर्जा का
एक अजस्त्र स्त्रोत,
मै धरती पर बोझ नहीं।।
ममतामयी,करुणामयी
जो धरा मिली,उस पर बही
जिस साँचे में ढाला ढल गई
जब-जब घर से निकाला,निकल गई
अपनाया वह जीवन जो मुझे मिला
मेरी अच्छाईयों का ये है सिला
कब तक सहूँ अन्याय ,रहूँ चुप
क्या मेरी कोई सोच नहीं।।
नारी हूँ मैं, ऊर्जा का
एक अजस्त्र स्त्रोत
मै धरती पर बोझ नहीं।।
मुझे दाँव पर लगाया
शक की आग में जलाया
मुसीबत आने पर तुमने
मुझे ढाल भी बनाया
मैंने बचाया दुनिया का अस्तित्व
फिर भी मेरा कोई मोल नहीं।।
नारी हूँ मैं ऊर्जा का
एक अजस्त्र स्त्रोत
मै धरती पर बोझ नहीं।।

Written by-Dr. Diksha Chaube,Durg,C.G.

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