दुआएं बेअसर हो रही हैं शायद
दे रहा कोई दर्द मेरा अपना ही ।
कह रही है हवा आकर कुछ कानो में
अनसुनी कर रहा कोई भीतर ही ।
सचेत कर रहे हैं भटकते रास्ते
बहकने लगे कदम फिर भी ।
अनजान लोग क्यों मिलने लगे हैं रोज
अपने तो चुराने लगे नज़र भी ।
सूख गये रस सारे ख्वाहिशो के
किये गए बेकदर क्योंकि ।
एहसास चलने लगे साथ -साथ
तन्हा न रहे सफ़र यूँ ही ।
मुकद्दर ने न जाने क्या लिखा है
अब करने लगे फिकर हम भी ।
दिल ने माना जबसे तेरा फ़ैसला
अपने से लगने लगे हैं सितम भी ।
भरने लगे हैं जख्म ए जिगर
वक्त ने लगा दिया मरहम वो ही ।।
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 22 November 2016
क्यो ?
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Shaandar ����
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .....
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