Friday, 17 March 2017

छोटा सा दिल

सीने में धड़कता हुआ,
छोटा सा दिल,
दिल में कई सपने,
उमंगें ,जज़्बात।
कभी गुस्सा ,कभी प्यार।
प्रेम,घृणा के,
गिरते-उठते ज्वार।
वेदना,पीड़ा,
बदला,परोपकार ।
सहानुभूति,दया,
आंसू,आभार ।
सेवा,करुणा,
खुशियाँ अपार ।
चिढ,ईर्ष्या,
सुख-दुख लगातार।
पता नही कैसे,
समा जाता है,
भावनाओं का संसार ।
इस छोटे से दिल की,
सीमा अनंत,अपार।।
      स्वरचित-डॉ. दीक्षा चौबे,दुर्ग,छ. ग.

स्वर्णिम अतीत

ओ मेरे स्वर्णिम अतीत.....
तुम मधुर क्षणों की स्मृति लिये,
खुशनुमा सफर का सुन्दर पड़ाव,
बहारों को तुम संजोये हुए,
मुझे वो दिन  फिर उधार दो ।
एक बार फिर पुकार लो।।
वो प्यारी बातें,वो मुलाकातें,
पंछी सी उड़ती मै सपने सजा के,
वो दिलकश नजारे,शोख अदाएं,
खुशियों भरे दिन और चाँदनी रातें,
मेरा आज भी तुम संवार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
फूलों सा खिला चेहरा,
अधरों पे मुस्कराहट,
आँखों में सुनहरे सपने,
तारों सी झिलमिलाहट,
मेरे रूप को फिर वो निखार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
दर्द भरे रिश्तों में ,
उलझे नयन ,झुलसते मन,
वक्त की शाखों से,
टूटते लम्हे,बिखरता चमन,
राहतों की ताजी बयार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
      ------०-----
Written by-Dr. Diksha chaube,Durg,C.G.

Sunday, 12 March 2017

होली है रे होली

होली है रे होली.....
नैन से उलझे नैन,
कर गये हाय बेचैन,
दिल की धड़कन डोली।।
होली है रे होली।।
उनकी प्यारी सी मुस्कान,
ले गई मेरी जान,
मीठी उसकी बोली।।
होली है रे होली।।
रंगने के बहाने,
बन गये कितने अफ़साने,
गिरहें कितनी खोली।।
होली है रे होली।।
मच गये रे हुड़दंग,
प्रेम के गहरे रंग,
सराबोर मैं हो ली।।
होली है रे होली।।
रंगों से भीगा  तन,
नेह से भीगा मन,
खाई मस्ती की गोली।।
आओ खेले होली,
ओ मेरे हमजोली,
होली है रे होली।।

   आप  सबको होली की शुभकामनाएं
Written by- Dr. Diksha chaube

Monday, 6 March 2017

अग्नि-परीक्षा

सबको जीवन देने वाली,
जग का पालन करने वाली,
सृष्टि की रचयिता नारी,
जगतजननी कहलाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
रावण के घर पर रहकर,
अपना सम्मान बचाये रखा।
एक तृण के साये में,
अपना स्त्रीत्व छुपाये रखा।
हो कलंकित फिर क्यों ,
निर्वासित की जाती है।।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि -परीक्षा ली जाती है।।
छल किया किसी ने पर,
अहिल्या पत्थर बनी।
आरोपों के कीचड़ से,
उसकी आँचल सनी।
बदनाम निगाहों से चूनर ,
उसकी तार-तार हो जाती है।।
क्यों हर बार सीता की ,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
दाँव पर लगाई गई,
अनावृत्त, अपमानित हुई।
बेची गई,खरीदी गई,
लूटी गई ,नोची गई।
युद्ध कोई भी जीते पर,
सब कुछ हार वही जाती है।।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
सूनी-सूनी दीवारों को,
उसने घर-संसार बनाया।
सींचा अपने लोहू से,
स्नेह का रसधार  बहाया ।
क्यों हर बार मर्यादा की,
बेड़ियों से जकड़ी जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
सागर सा विस्तृत मन,
भोले,निश्छल नयन।
विश्वास की मिठास पाकर,
सहज ही कर देती तन-मन अर्पण।
क्यों हर बार प्रेमी के ,
झूठे वादों से छली जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
दरिंदों ने लूटी अस्मत,
समाज ने किया बहिष्कृत।
दोष नहीं कुछ  भी उसका पर,
अपनों ने ही किया तिरस्कृत।
न्याय नहीं मिलता क्यों,
ख़ुदकुशी को लाचार हो जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
     --------०--------
Written by-Dr. Diksha chaube

Thursday, 2 March 2017

गुज़ारिश

जिन्दगी तुमने कैसे-कैसे रंग दिखाये ,
हर-एक रंग में रंजो-गम शामिल निकला।
ना हासिल हुई मंजिल,मिली सिर्फ तन्हाईयां,
वफ़ा की राह में हमसफ़र भी तंगदिल निकला।।
पहुँची थी जहाँ लेकर इंसाफ की गुहार,
वह पूरा शहर ही मेरा कातिल निकला।।
अब किस पर करूँ यकीं, साया भी साथ नहीं,
मेरी बर्बादी में हर-एक शख्स शामिल निकला।।
ख्वाहिशें लिखीं,इबादतें,फरियादें भी कीं,
सबकी सुनने वाला वो ख़ुदा भी संगदिल निकला।।
गुज़ारिश है इतनी,न रुकने,मिटने देना,
अश्कों के संग यादों का कारवाँ निकला।।
        ––----०---–---
Written by-Dr. Diksha chaube,Durg