ओ मेरे स्वर्णिम अतीत.....
तुम मधुर क्षणों की स्मृति लिये,
खुशनुमा सफर का सुन्दर पड़ाव,
बहारों को तुम संजोये हुए,
मुझे वो दिन फिर उधार दो ।
एक बार फिर पुकार लो।।
वो प्यारी बातें,वो मुलाकातें,
पंछी सी उड़ती मै सपने सजा के,
वो दिलकश नजारे,शोख अदाएं,
खुशियों भरे दिन और चाँदनी रातें,
मेरा आज भी तुम संवार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
फूलों सा खिला चेहरा,
अधरों पे मुस्कराहट,
आँखों में सुनहरे सपने,
तारों सी झिलमिलाहट,
मेरे रूप को फिर वो निखार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
दर्द भरे रिश्तों में ,
उलझे नयन ,झुलसते मन,
वक्त की शाखों से,
टूटते लम्हे,बिखरता चमन,
राहतों की ताजी बयार दो।
एक बार फिर पुकार लो।।
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Written by-Dr. Diksha chaube,Durg,C.G.
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Friday, 17 March 2017
स्वर्णिम अतीत
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