सबको जीवन देने वाली,
जग का पालन करने वाली,
सृष्टि की रचयिता नारी,
जगतजननी कहलाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
रावण के घर पर रहकर,
अपना सम्मान बचाये रखा।
एक तृण के साये में,
अपना स्त्रीत्व छुपाये रखा।
हो कलंकित फिर क्यों ,
निर्वासित की जाती है।।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि -परीक्षा ली जाती है।।
छल किया किसी ने पर,
अहिल्या पत्थर बनी।
आरोपों के कीचड़ से,
उसकी आँचल सनी।
बदनाम निगाहों से चूनर ,
उसकी तार-तार हो जाती है।।
क्यों हर बार सीता की ,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
दाँव पर लगाई गई,
अनावृत्त, अपमानित हुई।
बेची गई,खरीदी गई,
लूटी गई ,नोची गई।
युद्ध कोई भी जीते पर,
सब कुछ हार वही जाती है।।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
सूनी-सूनी दीवारों को,
उसने घर-संसार बनाया।
सींचा अपने लोहू से,
स्नेह का रसधार बहाया ।
क्यों हर बार मर्यादा की,
बेड़ियों से जकड़ी जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
सागर सा विस्तृत मन,
भोले,निश्छल नयन।
विश्वास की मिठास पाकर,
सहज ही कर देती तन-मन अर्पण।
क्यों हर बार प्रेमी के ,
झूठे वादों से छली जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
दरिंदों ने लूटी अस्मत,
समाज ने किया बहिष्कृत।
दोष नहीं कुछ भी उसका पर,
अपनों ने ही किया तिरस्कृत।
न्याय नहीं मिलता क्यों,
ख़ुदकुशी को लाचार हो जाती है।
क्यों हर बार सीता की,
अग्नि-परीक्षा ली जाती है।।
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Written by-Dr. Diksha chaube
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Monday, 6 March 2017
अग्नि-परीक्षा
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