आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Friday, 24 February 2017
पहचान
इस कदर स्वार्थी हो गया इंसान,
खो दी है उसने अपनी पहचान,
भ्रष्टाचार,घूसखोरी बन गई शान,
कहाँ गई वह मानवता की आन,
भूखे की रोटी छीन करते कल्याण,
ऐसे ही लोग अब कहलाने लगे महान।।
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