Tuesday, 21 February 2017

रे मन

रे मन !मत हो तू उदास ।
क्या हुआ?गर मिली न मंजिल,
आगे बढ़ना हुआ मुश्किल ,
राहें तो है तेरे पास ।।
रे मन! मत हो तू उदास।।
धरती में पड़ी दरारें ,
सूखे जल-स्त्रोत सारे,
पर क्यों तू हिम्मत हारे,
सावन की तो है आस ।।
रे मन ! मत हो तू उदास ।।

बहुत भटका तू अँधेरे में,
फँसा अवसादों के घेरे में,
सूरज  कल निकलेगा ही,
तम को हर लेगा उजास।।
रे मन ! मत हो तू उदास।।

तूफानों का मंजर है,
घेरे में लेता बवंडर है,
नाव फंसी है भँवर में,
पार उतरेगा,रख विश्वास ।।
रे मन ! मत हो तू उदास।।

दुनिया के शब्द भयंकर हैं,
दिल में चुभोते नश्तर हैं,
अपने ही घोंपते खंजर हैं,
दरिया में ढूंढ तू मिठास ।।
रे मन ! मत हो तू उदास ।।

राह भले हों पथरीले ,
काँटों में ही फूल खिले ,
निरन्तर चलता चल ,
सुख-दुख आएंगे साथ ।।
रे मन ! मत हो तू उदास ।।

गिरना है, सम्भलना है,
तुमको कहीं न रुकना है ,
चुनौतियां स्वीकार करे ,
इन्सान है तू वो खास ।।
रे मन ! मत हो तू उदास ।।
     डॉ. दीक्षा चौबे                     

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