बनकर खुशबू ,फूलों में महकती हूँ ,
चिड़ियों की तरह,हर शाख पे चहकती हूँ।
आसमान की बुलंदियों में न ढूँढना मुझे,
बारिश की बूँद हूँ ,मिट्टी में ही निखरती हूँ।
मंदिर में,न मस्जिद में है मेरा ठिकाना ,
श्रम का मोती हूँ ,पसीने में मिलती हूँ ।
आलिशान इमारतों में क्यों ढूंढ़ रहे मुझको,
बेबसी की बेटी हूँ ,झोपड़ी में पलती हूँ ।
सिर पर न चढ़ाना मुझे दिल में बसा लेना,
नूर की बूँद हूँ ,बस आँखों से ढलती हूँ।।
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Written by- डॉ. दीक्षा चौबे
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Sunday, 26 February 2017
एहसास
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