भारत - माता के चरणों में,
उपहार चढ़ाने आई हूँ ।
बिछिया , चूड़ी , कंगन सब,
श्रृंगार चढ़ाने आई हूँ ।
ऐसी रस्में छोड़ दो ,
जो स्त्री को कमजोर करे ,
ऐसे बन्धन तोड़ दो ,
यह पुकार लगाने आई हूँ ।।
भारत माता के चरणों में ,
उपहार चढ़ाने आई हूँ ।
माता अपनी शक्ति से ,
मेरे नैनों को निर्जल कर दे ।
देश - प्रेम की ज्योति जला ,
हृदय को पावन ,सरल कर दे ।
स्वीकार कर अर्पण मेरा ,
जीवन- पथ सफल कर दे ।
राष्ट्रहित में मरने को हूँ ,
खड़ी तैयार बताने आई हूँ ।।
भारत माता के चरणों में ,
उपहार चढ़ाने आई हूँ ।।
ममता के आँचल में पलते ,
हर बालक को सबल कर दे ।
सीने में दबी चिंगारी ,
क्रांति ज्वाल प्रबल कर दे ।
डिगे न कभी कर्तव्य - पथ से,
इरादों को अचल , अटल कर दे ।
मातृ - रक्षण को तत्पर हों ,
यह ललकार दिलाने आई हूँ ।।
बिछिया , चूड़ी , कंगन सब ,
श्रृंगार चढ़ाने आई हूँ ।।
देख अन्याय , भेदभाव ,
अब न चुप रहूँगी ।
सहती आई अब तक ,
अब न सहन करूँगी ।
दुष्टों के दमन को ,
दुर्गा, काली रूप धरूँगी ।
आँसुओं को कमजोरी नही ,
अपना हथियार बनाने आई हूँ ।।
भारत माता के चरणों में ,
उपहार चढ़ाने आई हूँ ।।
कुदृष्टि रखने वालों की ,
दृष्टि को निर्मल कर दे ।
अत्याचारी , पापी के ,
कलुषित मन को धवल कर दे ।
भस्म हों सारे असुर ,
ऐसी अग्नि प्रज्ज्वल कर दे ।
अपने अस्तित्व को न मिटने दूँगी ,
यह शपथ उठाने आई हूँ ।।
बिछिया , चूड़ी , कंगन सब ,
श्रृंगार चढ़ाने आई हूँ ।
भारत माता के चरणों में ,
उपहार चढ़ाने आई हूँ ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़☺️
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