Saturday, 2 September 2017

सती ( कहानी )

   कल एक विवाह समारोह में शिल्पी से अचानक मुलाकात हो गई । बहुत वर्षों के बाद मायके के किसी
परिचित से मुलाकात की प्रसन्नता ही कुछ और होती
है जो हम दोनों के मिलते ही आस-पास के लोगों पर
जाहिर हो गई थी । शिल्पी मुझे भिलाई में देखकर चकित थी - " दीदी , आप लोग यहाँ कब आ गए , मुझे
पता ही नहीं था  ।" बस , इसी माह इनका ट्रांसफर हुआ ...तेरी शादी के बाद पहली बार  तुझे देखकर बहुत खुशी हो रही है , और सुना ...कैसा है तेरा ससुराल? मैंने उसे नख - शिख तक सर्वांग निहारते हुए
पूछा । सदैव जीन्स - टॉप में  झलनी सी घूमने वाली
शिल्पी सिर पर पल्लू लिये करीने से सुंदर साड़ी पहनी
हुई थी ..साड़ी से मैच  करती हुई ज्वेलरी उसके रूप को
और अधिक निखार रही थी । आइये , आपको अपनी
फैमिली से मिलाती हूँ - उसने बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने सास - ससुर , ननद व पति से मेरा परिचय कराया । कुछ पल की मुलाकात में ही यह महसूस हो गया कि
शिल्पी अपने नये परिवार में घुल - मिल गई है और बहुत खुश है ।
        शिल्पी थी तो मेरी छोटी बहन निधि की सहेली , परन्तु मुझसे भी उसकी खूब जमती थी । पढ़ाई से लेकर सौंदर्य - समस्या तक प्रत्येक विषय पर वह मुझसे
खुलकर चर्चा करती । निधि कई बातें मुझसे छुपा जाती
परन्तु शिल्पी उसकी सारी पोल मेरे सामने खोल दिया
करती थी । निधि को एक बार परेशान देखकर मैंने शिल्पी को ही बुलाया था । कॉलेज के एक लड़के द्वारा
उसे परेशान करने की बात सुनकर हम उससे मिलने गए
थे और उस लड़के को खूब फटकार लगाकर आये थे ।
उसके बाद उसने फिर निधि को तंग नहीं किया, इसलिये निधि अब मुझसे कहीं अधिक खुलकर बातें करने लगी थी  । अपनी छोटी बहन का विश्वास जीतकर
मेरा मन शिल्पी का एहसानमन्द हो गया था ।
       मेरी शादी तय  हो जाने पर वे दोनों  मुझे खूब छेड़ती थीं । मेरे मंगेतर विकास का फोन आने पर दोनों
की इशारेबाजियाँ  मन को गुदगुदा जाती थीं ...उनके काउंट डाउन करते - करते वह दिन भी आ गया जब
विवाहोपरांत मैं ससुराल आ गई । समय - चक्र के साथ
हमारा परिवार बढ़ा और मैं अपने नये  परिवार में रम गई । शिल्पी से कभी - कभी फोन पर बातें होती थी ।
निधि के द्वारा मालूम हुआ कि शिल्पी   की शादी की बात चल रही है परन्तु वह इसके लिए तैयार  ही नहीं है ।
वह शादी नहीं करना चाहती थी... युवा मन सुनी - सुनाई बातों से अधिक प्रभावित होता है । पत्रिकाओं ,
टी. वी. सीरियल की पारिवारिक खलनायिकाओं ने उसे
भयभीत कर रखा था । दो - तीन असफल विवाह के
उदाहरण उसने अपने परिवार में  देखे थे । वह कहती -
यदि पति चरित्रहीन या शराबी निकल  गया  तो मेरी तो
पूरी जिंदगी बर्बाद हो जायेगी । मैंने उसे बहुत समझाया
तो वह कहने लगी - " लड़कियों का जीवन तो एक जुआ होता है दीदी , यदि ससुराल व पति  अच्छे मिले
तो जिंदगी गुलजार और यदि खराब हुए तो नर्क ...न बाबा न , मैं तो शादी ही नहीं करूँगी । "
         "  शिल्पी , सभी तेरी तरह सोचते तो परिवार , समाज ही नहीं बनते । कुछ न कुछ कमियाँ , खूबियाँ
तो हर इंसान में होती है । हमें कमियों से समझौता करके चलना पड़ता है । एक घर में पैदा हुए दो भाई - बहनों में मतभेद नहीं होते क्या ? पर वे समझौता करते
हुए परस्पर समन्वय करते हैं न , एक - दूसरे  से प्यार भी करते हैं । रिश्तों के ताने - बाने  इतने मजबूत होते
हैं कि छोटे - छोटे मतभेद उन्हें प्रभावित नहीं कर पाते ।
तू बेकार की चिंता में उलझी है , इतना अच्छा प्रस्ताव है , शादी कर ले । "
    " शादी है ऐसा लड्डू..जो खाये वो पछताये जो न खाए वो ....निधि ने गाना शुरू किया और चिढ़कर शिल्पी उसे मारने दौड़ी ...। आज शिल्पी को इतनी खुश
देखकर मन को तसल्ली हुई और उसके बारे में अधिक
जानने की मेरी उत्कंठा बढ़ती गई ।
      थोड़ी सी बारिश धरा की प्यास और अधिक बढ़ा देती है , उसी प्रकार उस छोटी सी मुलाकात ने मेरे मन
को अतृप्त कर दिया था । शीघ्र ही अच्छा सा दिन देखकर मैंने शिल्पी और शिखर को खाने पर बुला लिया । मेरे घर पर शिल्पी को मायके वाली फीलिंग हो रही
थी ,वह बेहद प्रसन्न थी । खाने की मेज पर आते ही वह
चिल्लाई - वाओ दी , आपने तो मेरी मनपसन्द सब्जी
बनाई है ...ग्रेट । शिखर भी उसकी इस हरकत पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका था । खाने के बाद शिखर
और विकास घूमने चले गये ...मैं और शिल्पी बिस्तर पर
लेटकर आराम करने लगे ..तभी मैंने उससे ससुराल व पति के बारे में पूछा  ।
       शिल्पी चहक उठी थी.. सब बहुत अच्छे हैं दीदी ।
माँ - पिताजी दोनों बहुत प्यार देते हैं मुझे ..किसी भी
काम में मुझे परेशानी होती है तो वे मेरा मार्गदर्शन करते
हैं , लगता ही नहीं कि किसी पराये घर में आई हूँ.. इतना
अपनापन , स्नेह...मैं भी कोशिश करती हूँ कि उन्हें सदैव खुश रखूँ ।
    और हाँ वो तुम्हारी ननदें ... जो तुम्हें सपनों में भी
डराया   करतीं  थीं , उनका क्या हाल है ? मैंने उसे छेड़ते हुए  पूछा । ननदों का व्यवहार भी बहुत सहयोगपूर्ण व
स्नेहिल है । सिर्फ मेरे घर में ही नहीं, इस परिवार के अन्य भाइयों यानी कि चाचा , बड़े पापा की बहुओं को
भी उतना ही सम्मान व प्यार मिलता है जितना यहाँ की
बेटियों को  । कहीं कोई कटुता , द्वेषभाव या नाराजगी
नहीं है ...परन्तु इन सब के पीछे एक कहानी है , सुनेंगी
आप ?
     " हाँ हाँ बिल्कुल ! मैं तो बेताब हूँ उस बात को जानने के लिए जिसने घर में आने वाली एक पराई लड़की को अपना बना लिया । जहाँ हर दूसरे घर में सास - बहू और ननद - भाभी के झगड़ों के किस्से सुनने
मिलते हैं वहाँ तुम्हारा परिवार  अपवाद है बल्कि कहे
तो एक  आदर्श परिवार है ।
        दीदी , वर्षों पहले की बात है ...अपनी कलहकारी
ननदों के अत्याचार से त्रस्त होकर इस परिवार की एक
बहु  ने रसोईघर में  आत्मदाह कर लिया था । उसके बाद उनका शाप कहिये या दैविक संयोग कि यहाँ कोई
बेटी पैदा ही नहीं हुई । कुछ बेटियों ने जन्म लिया भी तो
अधिक दिन जीवित नहीं रहीं । कई पीढ़ियों बाद घर के
बुजुर्गों ने उन ' सती ' की आराधना करने की राह सुझाई
उसके बाद प्रमुख त्योहारों में  उनकी पूजा होने लगी ।उसके बाद ही  बेटियों का जन्म हुआ और वे सुरक्षित भी बचीं । तब से " सती " माँ की पूजा नियम से की जाती है । इस विशेष पूजा को रसोई में ही किया जाता
है और बेटियों का प्रवेश निषिद्ध रहता है , न ही वे पूजन
में भाग लेती हैं न इसका प्रसाद  खाती हैं । दीदी , मैं
धार्मिक कर्मकांडों में विश्वास नहीं रखती परन्तु इस
आस्था को देखकर मैं नत - मस्तक हो गई हूँ  क्योंकि
उनके बलिदान ने इस खानदान में बहुओं को स्नेह व
सम्मान दिलाया  ।
       शिल्पी की श्रद्धा उसकी आँखों में छलक रही थी और मैं भी भावाभिभूत हो गई थी यह दास्तान सुनकर ।
एक स्त्री के बलिदान ने  या कहें कि   बेटी के अभाव ने कई लोगों को  कन्या रत्न के मान - सम्मान का सबक सिखा दिया ...किन्तु कई परिवारों में आज भी स्त्री का अनादर , उन पर अत्याचार हो रहे हैं ...कन्याभ्रूण को
कोख में ही मार डाला जा रहा है ...काश ! माँ सती उन्हें
भी कुछ सद्बुद्धि दे देतीं ।

   ******* ***** ******स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
                            दुर्ग , छत्तीसगढ़
      

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