समाचार - पत्र में एक दुःखद समाचार पढ़ा
कक्षा नवमी की एक छात्रा ने परीक्षा हॉल में ही फाँसी
लगाकर आत्महत्या कर ली...वजह थी परीक्षा में वह
गाइड लेकर आई थी , पकड़े जाने पर शिक्षकों द्वारा
उसे डाँटा गया और उसके पिताजी से भी शिकायत की
गई.... छात्रा यह अपमान सहन न कर सकी और उसने
यह कदम उठाया , जाहिर है वह घर जाकर अपने माता - पिता का सामना नहीं करना चाहती थी । शिक्षको ने
यह भी बताया कि वह होशियार छात्रा थी और उस स्कूल में विज्ञान के शिक्षक नहीं थे । शायद फेल होने के
डर से वह गाइड लेकर आ गई थी ...। यह घटना हमें
कुछ सोचने पर मजबूर तो करती है ....कहीं हम युवा
मन को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं या उन्हें अपनी बात समझा नहीं पा रहे हैं । वह बच्ची पढ़ाई में अच्छी थी तो उसे कुछ इस तरह से समझाना था कि उसे सबके
सामने अपमानित न होना पड़ता या परीक्षा के बाद अकेले में उसे समझा सकते थे । इस अवस्था में बच्चों
के मन में इतना आक्रोश रहता है कि वे सही - गलत
सोचने की स्थिति में भी नहीं रहते और अपने आपको
खत्म करने पर आमादा हो जाते हैं । कुछ ही दिन पहले
भिलाई की कक्षा दसवीं की छात्रा ने इसलिये आत्महत्या कर ली थी कि रात को उसे माँ ने व्हाट्सअप
चलाने से मना किया था और पढ़ने के लिए कहा था ।
यह सब देखकर पालक भी सदमें में हैं कि बच्चे से क्या कहें , किस तरह उनके साथ व्यवहार करें , उन्हें कैसे समझाएं कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत ।
सभी इस बात को जानते हैं कि माता - पिता के डाँट के
बिना सफलता सम्भव नहीं , वे उन्हें अनुशासन नहीं सिखायेंगे तो कौन सिखायेगा । माता , पिता और गुरु ही
तो बच्चे को सही राह दिखाते हैं ,पर बच्चे यदि इन्हीं की
बातों का बुरा मानने लगे तो क्या होगा? वर्तमान में
ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं इसलिये बच्चों को इस उम्र में
बहुत ही समझदारी से टेकल करना होगा । क्रोध सोचने - समझने की शक्ति को क्षीण कर देता है ...यदि इस वक्त सम्भाला न जाये तो वह कुछ भी कर जाता है। यह क्षणिक आवेश यह भी सोचने का मौका नहीं देता कि जीने की राहें और भी हैं ...एक ही जगह पर रुक जाना जीवन नहीं है... यह भी कि समय वह मलहम है जो हर घाव भर देता है । किस प्रकार बच्चों को यह समझायें कि इस अनमोल जीवन को इन छोटी
छोटी असफलताओं के लिए खत्म न करें । निराशारूपी
अंधेरे को छँटने दें...अगली सुबह एक नई उम्मीद
लेकर आयेगी । अभिभावकों के लिये यह एक चुनौती
है कि वे अपने बच्चों को इसके लिए कैसे तैयार करें ।
उन्हें चाहिये कि बच्चों को जीवन - मूल्यों की शिक्षा दें,
हार - जीत , सफलता - असफलता दोनों को खुशी - खुशी स्वीकार करने के लिये तैयार करें। नम्बरों की
दौड़ का हिस्सा न बनें , दूसरे से तुलना करके उन्हें हीन
भावना का एहसास न कराएं । सबसे बड़ी बात ,परिस्थितियों का सामना करने की सीख दें । संघर्ष करने के लिए तैयार करें क्योंकि यह समय चुनौतियों का है ...कितनी बार अपने आप से ही लड़ना
पड़ता है, स्वयं को अपनी ताकत का एहसास दिलाना
पड़ता है तब कहीं सफलता मिलती है... नहीं भी मिली
तो कुछ तो होगा ही। असफलता के लिए भी बच्चों को
मानसिक तौर पर तैयार करना होगा चाहे वह कोई भी
क्षेत्र हो पढ़ाई , कैरियर या प्रेम । युवा मन को समझने
का प्रयास करना होगा अभिभावकों को ताकि ऐसी
घटनाओं का दुहराव न हो ।
प्रस्तुति - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Sunday, 24 September 2017
युवा मन को समझने की जरूरत
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