वो उन्नीस घण्टे ट्रेन का सफर उनके जीवन में एक नई रोशनी लेकर आया था...उनके छीजते रिश्तों को एक नया मोड़ दे गया था वह सफर..उनकी बेरंग होती जिंदगी फिर से खुशनुमा रंगों से सराबोर हो गई थी । रश्मि और शशांक अपने वैवाहिक जीवन के तेरहवें वर्ष में प्रवेश कर रहे थे । काम की व्यस्तता कहें या अपने कैरियर के प्रति अति जागरूकता... वजह कुछ भी हो पर वे दोनों एक दूसरे से दूर हो रहे थे । बेटे यश की जरूरतें उन्हें जोड़े रखती थीं पर उसकी दादी की सजग देखभाल ने पति - पत्नी दोनों को कुछ बेपरवाह सा बना दिया था । माँ चाहती थी कि दोनों यश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें...दादी से कितना भी प्यार हो पर वह मम्मी - पापा की जगह नहीं ले सकती पर वे अपनी नौकरी में ऐसे लगे हुए थे कि बढ़ते बच्चे की भावनाओं से उदासीन हो रहे थे और एक - दूसरे के लिए भी समय नहीं निकाल पा रहे थे । उनके जीवन के खूबसूरत पल यूँ ही जाया हो रहे थे और उन्हें इसका एहसास भी नहीं हो रहा था । उस दिन जब यश ने शिकायत की न जाने कितने वर्षों से हम कहीं पिकनिक पर नहीं गए तो वे सन्न रह गये थे...सच ही तो कह रहा था यश...उन्हें याद ही नहीं रहा कि वे कब साथ घूमने निकले थे । पर इस बार माँ ने उन्हें साथ भेजने का रास्ता ढूंढ निकाला था...गाँव की एक जमीन उन दोनों के नाम थी जिसे बेचने के लिए दोनों को साथ जाना जरूरी था...बड़ी मुश्किल से दोनों का प्लान बना और वे इस सफर पर निकले थे । यश को दादी ने अपने साथ ही रख लिया था । कुछ समय वे अपने - अपने फोन पर लगे रहे....पर आखिर कब तक ... फिर वे बातें करने
लगे ...अपने काम की ...सहकर्मियों की...फिर बीते पलों की .... वर्षों बाद उन्हे फुर्सत मिली थी अपनी स्मृतियों को खंगालने की....वो खूबसूरत पल , रूमानी लम्हे जो परिस्थितियों की गर्द में छुप गये थे ...इस सुहाने सफर ने उन्हें उभार दिया था । शशांक याद कर रहा था हनीमून के लिए जब वे पचमढ़ी गये थे तो रश्मि चल - चल कर थक जाती थी और उसके पैरों पर क्रीम मलते हुए शशांक शरारती हो उठता था...उन बातों को याद कर रश्मि के गाल संकोच से आज भी लाल हो रहे थे । रश्मि ने अपने फोन में यश के बचपन की कुछ बेहद खूबसूरत तस्वीरें खीँच रखी थी...वे दोनों मंत्रमुग्ध हो उन्हें देखते रहे...इतनी देर तक दूर - दूर बैठे वे इसी बहाने करीब आ गये थे...कब रश्मि ने अपना सिर शशांक के कंधे पर रख दिया था पता ही नहीं चला । अतीत की स्मृतियों की मधुरता में उनका वर्तमान भीग गया था... आते और जाते हुए उन्होंने ढेर सारी बातें की....साथ बिताए पलों की , अपने ख्वाबों की , दिल में पल रहे हजारों हसरतों की...उन कल्पनाओं की जिन्हें साकार करने का निश्चय किया था कभी...कैसे भूल गए वे दोनों....पता नहीं कब उनके रास्ते अलग हो गए और वे हम से मैं बन गये । उन दोनों ने जीवन की राह में साथ चलने का निर्णय लिया था , दोनों की मंजिल एक थी फिर वे पता नहीं कब भटक गए ...बारिश की रिमझिम फुहार पत्तों - पत्तों को नहला जाती है और समस्त प्रकृति एक नए कलेवर में सजी नजर आती है वैसे ही उनकी जिंदगी को एक नया कलेवर मिल गया था , यादों की फुहार में भीगकर मानो वे दोनों भी तरोताजा हो गए थे और बीती बातों को भूलकर एक नई ऊर्जा व उत्साह से जीवन की दूसरी पारी खेलने को तैयार हो गए थे । उनका गन्तव्य आ गया था...उन्होंने अपने गाँव से रायपुर तक का नहीं अपितु भूले - बिसरे अतीत की यादों से वर्तमान तक का सफर तय किया था ...एक - दूसरे के हाथों को मजबूती से थामे वे बढ़ने लगे...उनके चेहरों पर यात्रा की थकान नहीं , एक मधुर मुस्कान थी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
Bahut badhiya didi☺️☺️☺️����
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
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