रिश्ते...जरूरतों की खुराक पर पलते ,
सामंजस्य और प्रेम की धरा पर टिकते ।
परिचय को प्रगाढ़ता में बदलते ,
रक्त सम्बन्धों को कसौटी पर कसते ।
रिश्ते...कभी स्वार्थ की तुला पर तुलते ,
कभी निःस्वार्थ सेवा समर्पण करते ।
कभी कोई इनके नाम पर छलते ,
कभी अनजान मददगारों से रिश्ते जुड़ते ।
रिश्ते...सुख - दुःख में साथी बनते ,
स्नेह , आशीष की बारिश में भिगोते ।
विपत्तियों की धूप से बचाते ,
उम्मीदों की रोशनी में नहलाते ।
रिश्ते...गर्मी की उमस में राहतों के झोंके ,
मरुभूमि में बारिशों की ख्वाहिशें ।
तूफानों में मजबूत छत से भरोसे ,
बीमारी में दवा - दुआओं के सदके ।
रिश्ते...खुदा की अनमोल नेमतें ,
मन में सीप की मोती से पलते ।
त्यौहारों की इनसे है रौनकें ,
इन धरोहरों को प्यार से सहेजें ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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