Thursday, 28 June 2018

एक अनोखा पत्र ( संस्मरण )

जिंदगी कई बार ऐसे अनुभव दे जाती है कि इसे सलाम करने को दिल करता है । कहानियाँ लिखने का  सबसे बड़ा इनाम है पाठकों की प्रतिक्रिया ...जो कुछ बेहतर लिखने की प्रेरणा तो देती ही है... मन को एक नई ऊर्जा
व उत्साह से लबरेज कर देती है । आज से कई वर्षों पहले की बात है... तब  फोन का उतना प्रचलन नहीं था..पत्रों के द्वारा पाठकों की प्रतिक्रिया मिलती थी । मेरी रचनाएँ दैनिक भास्कर , नवभारत व नई  दुनिया आदि समाचार पत्रों में प्रकाशित होती थी और उन्हें पढ़कर कई पाठक पत्र भी लिखते थे । एक बार मुझे एक पत्र मिला जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया ...पत्र के आड़े- टेढ़े शब्दों में उन्होंने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था जो इस प्रकार था...दीक्षा जी , मैं अपने जीवन से त्रस्त था..मन में ख्याल आ रहे थे कि अपने जीवन का अंत कर लूँ.... किराना दुकान से गुड़ लेकर आ रहा था... उसी अखबार के टुकड़े में आपकी लघुकथा पढ़ी जिसने  मेरा नजरिया बदल दिया.. मेरे मन में  संघर्ष करने व जीवन  जीने  का उत्साह पैदा हुआ  और मैंने मरने का इरादा छोड़ दिया... आपका बहुत - बहुत धन्यवाद... यूँ ही लिखते रहें और लोगों के जीवन में उजाला फैलाते रहें ।
      इस पत्र ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया...साथ ही मेरे मन को ढेर सारी खुशियों और  उत्साह से भर दिया
मेरी लेखनी का अपार उत्साहवर्धन किया ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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