सुखीराम जी को बाजार से लौटते वक्त एक पुराने मित्र मिल गये... चलते - चलते बातें होने लगी...राजनीति की , समाज की , परिवार की । लगता है उनके मित्र को अपने बेटे - बहू से बहुत शिकायतें थीं ....दो - तीन घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने उनकी बुराई की...कुछ बातें तो वे ध्यान से सुनते रहे.. फिर उन्हें लगा कि ये कुछ ज्यादा ही बोल रहे हैं तो उन्होंने मित्र से कहा-- यार तुमने पिछली मुलाकात में बताया था कि बेटे के ससुराल से खूब फल और मिठाईयां आई पिछले साल...हाँ.. कहा तो था थोड़ा हिचकिचाते हुए उन्होंने उत्तर दिया । तो... तो क्या ? मिठाइयां तो तूने एक न खिलाई ...जब मिठास नहीं बाँटी तो कड़वाहटें क्यों बाँट रहा है... उनके मित्र महोदय निरुत्तर हो गए थे ।
समाज में ऐसे रोने , शिकायतें करने वालों की कमी नहीं है ...वे स्वयं तो दुखी रहते हैं , अपने सम्पर्क में आने वालों को भी गमगीन बना देते हैं । कई बार तो दुःखी होने के कारण भी उनके खुद के बनाये हुए होते हैं । आप किसी से दो पल मिलते हैं तो अपनी परेशानियों का रोना लेकर मत बैठिये... हँसी - खुशी की बातें करिये ताकि आप भी अपने - आपको ताजा महसूस करें और सामने वाला भी आपसे मिलकर खुशी - खुशी घर जाए । कुछ लोग तो यह सोचकर हमेशा अपने - आपको पीड़ित बताते हैं कि उन्हें लोगों की सहानुभूति मिले.. भले ही उनके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा हो ।
कुछ लोगों की आदत होती है कमियाँ ढूँढने की..लाख अच्छाइयों के बीच वे कोई न कोई बुराई ढूंढ ही लेते हैं । आपने वो चित्रकार वाली कहानी पढ़ी होगी न जिसने अपनी एक खूबसूरत पेंटिंग चौराहे पर टांग कर लोगों से उसमे कमी पूछी थी..उसे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि शाम तक उसकी पेंटिंग लोगों द्वारा बताई गई कमियों से भर चुकी थी । दूसरे दिन जब वही पेंटिंग कमियों में सुधार करते हुए बनाने के लिए टांगी तो एक भी निशान नहीं था । लोगों के द्वारा की गई आलोचना
से यदि कोई सुधारात्मक सुझाव मिलता है तो उस पर गौर फरमाइए पर यदि यह आपको अपने मार्ग से विचलित करती है तो उन्हें भूल जाइये । कुछ तो लोग कहेंगे ..लोगों का काम है कहना..गुनगुनाते हुए जीवन में आगे बढिये...शुभकामनाएं । फिर मिलेंगे एक नये अनुभव के साथ तब तक के लिए नमस्कार , प्रणाम , जय जोहार ।
स्वरचित। - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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