कुछ दिन बाद ऐसा अवसर आया कि उन्हीं पड़ोसी द्वारा अपने बेटे के जन्मदिन पर सुखीराम व उनके परिवार को आमंत्रण मिला । पहली मुलाकात में ही सुखीराम जी ने पड़ोसी से कहा...आपकी आवाज तो पहले भी सुनता रहा हूँ ...रूबरू मुलाकात पहली बार हो रही है । पड़ोसी के लिए ये शब्द अप्रत्याशित थे...शायद अवांछित भी । सुखीराम ने देखा उनकी पत्नी रेखा बहुत अच्छी चित्रकार थी...दीवारों पर लगी पेंटिंग्स में उसका नाम लिखा हुआ था..बेटा तुमने यह सब कब बनाया...चाचाजी यह तो मैंने शादी के पहले बनाया था... अब तो न समय मिलता और न ही इच्छा होती...यहाँ तो किसी को रुचि ही नहीं , शिकायती लहजे में ऐसा कहते हुए उसने अपने पति की ओर देखा । सुखीराम और दो - चार अन्य लोगों के द्वारा मिली तारीफ से बहुत प्रसन्न हुई थी रेखा...उसके पति का ध्यान भी अब उन पेंटिंग्स की तरफ था...जिसे शायद उन्होंने पहले कभी ध्यान से देखा नहीं था । सुखीराम जी ने अपने लिए एक पेंटिंग की फरमाइश कर दी थी.. और समय निकालकर बनाने का वादा किया था रेखा ने ।
कुछ समय बाद सुखीराम जी के लिए रेखा ने एक बहुत ही सुंदर पेंटिंग बनाई...और वह उन्हें भेंट कर दिया यह कहते हुए कि आपने मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा दिया और अब मैं आगे भी पेंटिंग्स बनाती रहूँगी । उसकी कलाकारी देखकर मोहल्ले के कुछ बच्चे उससे ड्राइंग , पेंटिंग सीखने भी लगे थे...रुचि होने के कारण रेखा को मजा आने लगा था और वह इन सब कामों के लिए समय का उचित प्रबंधन करने लगी थी..उसके घर के अन्य सदस्य भी उसकी कला का सम्मान करने लगे थे और हाँ... अब उस घर से लड़ने -झगड़ने की आवाजें नहीं आतीं...आवाजें आती हैं तो सिर्फ हँसने और खिलखिलाने की ।
अक्सर ऐसा होता है कि स्त्रियाँ घर की जिम्मेदारियों में उलझ कर अपने दोस्त , अपनी रुचियाँ , अपने शौक सब भुला देती हैं... बच्चे जब तक छोटे रहते हैं तब तक तो वे व्यस्त रहती हैं.. उसके बाद एकाकीपन महसूस होने लगता है जो तनाव और चिड़चिड़ेपन को जन्म देता है... अपनी पहचान खो देना किसे अच्छा लगेगा..
उनके अंदर की कला , प्रतिभा का दम घुटते रहता है और वह अंदर से खुश नहीं रह पाती...मन के अवसादों को बाहर निकलने का माध्यम नहीं मिलता तो वह प्रस्फुटित होकर निकलता है कभी उच्च रक्तचाप , हृदयाघात या तनाव के रूप में , कभी तीखे शब्द बाणों के रूप में । सारी जिमेदारियों के साथ अपने - आपको खुश रखना भी एक जिम्मेदारी है यदि महिलाएं ऐसा नहीं कर रही हैं तो घर के बाकी सदस्यों को इस ओर ध्यान देना चाहिये कि वे अपने शौक , रुचि को भी जीवित रखें और चंद पल खुशियों के साथ जरूर बितायें । मिलते हैं सुखीराम जी के जीवन के कुछ और अनुभवों के साथ तब तक के लिए नमस्कार , प्रणाम , जय जोहार ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
अपनी इच्छाओं को जीवित रखें शौक पूरा करने की कोई उम्र नही होती
ReplyDelete