मिलनयामिनी ( लघुकथा )
आज निशा और रवि की मिलन की रात थी ...घर के ऊपरी मंजिल पर था उनका कमरा... निशा कुछ पल के लिए बालकनी में आई और आसमान की ओर देखकर मानो निःशब्द हो गई.. पूनम के चाँद की दूधिया रोशनी में आसमान नहाया हुआ था... तारे यहाँ - वहाँ छिटक कर मानो लुकाछिपी का खेल खेल रहे हों ... घर की बाउंड्रीवाल पर चढ़ी मधुमालती के फूलों की भीनी खुशबू मदहोश किये जा रही थी... निशा मन्त्र - मुग्ध सी प्रकृति की खूबसूरती में इतनी डूबी हुई थी कि उसे पता ही नहीं चला कब रवि अंदर आ गया है और निशा को निहार रहा है.. अचानक उस से निगाहें मिली और शर्म से झुक गई । पीछे से आकर अपनी बाहों में भर लिया था उसने निशा को... थैक्स टू यू... उस दिन तुमने पहल नहीं की होती तो आज मिलन की यह रात नहीं आई होती.. हिम्मत तो करनी ही थी...ऐसे कैसे जाने देती आपको..खिलखिला उठे थे वे दोनो ...दरअसल मध्यस्थता करने वाले उनके एक रिश्तेदार ने उनके बीच कुछ गलतफहमियां पैदा कर दी थी और दोनों परिवार यह समझ रहे थे कि सामने वाले ने उन्हें रिजेक्ट किया है । तब निशा ने ही रवि को फोन किया था यह जानने के लिए कि ऐसी क्या बात हो गई कि उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया ...तब जाकर उन्हें असलियत मालूम हुई और उनकी गलतफहमियां दूर हुई और वे जीवनसाथी बनकर एक राह पर चल पड़े । प्यार व विश्वास के साथ आज वे एक नई शुरुआत करने जा रहे थे... चाँद अपने प्यार की चाँदनी बरसा रहा था और मधुमालती अपनी खुशबू... दिलों की वीणा के तार झंकृत हो उठे थे... एहसासों की महक के साथ मिलनयामिनी और भी खूबसूरत हो चली थी ।
स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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