वर्मा जी के बेटे का ससुराल उसी शहर में था...जाहिर है बेटे - बहु का वहाँ आना - जाना लगा रहता था । वैसे उसके ससुराल वाले हर काम में मदद भी किया करते थे । आये दिन बहु के वहाँ रुक जाने पर उन्हें दिक्कत होने लगी थी .. वर्मा दम्पत्ति को कुछ ठीक नहीं लग रहा था फलतः उन्होंने बेटे को समझाने की कोशिश की... थोड़ा कम आया जाया करो बेटा ..तभी इज्जत बनी रहेगी । क्यों पापा ? आप जिंदगी भर अपने ससुराल का फायदा उठाते रहे तब यह बात याद नहीं आई थी .. संयोग से वर्मा जी की ससुराल भी वहीं थी...बेटे ने तो बस उन्हें आईना दिखा दिया था ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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