Saturday, 26 May 2018

किस्से सुखीराम के भाग 2

      सुखीराम जी अपने नाम के अनुरूप हमेशा खुश और सन्तुष्ट रहते थे । उनकी दो सन्तानें थीं - बड़ा बेटा जो अभी  कॉलेज की  पढ़ाई कर रहा था और बेटी छोटी अभी स्कूल में थी । आजकल के माता - पिता सबसे ज्यादा दुःखी हैं अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता में...के. जी. टू में पढ़ने वाले बच्चे की माँ भी चिंता में डूबी दिखाई देती है ...हिंदी वर्णमाला ठीक से लिख नहीं पा रहा है बेटा... क्लास वन , टू में नम्बरों की होड़ लगी है । बच्चे को उठते , बैठते फ्रूट्स , फ्लॉवर्स के नाम रटाये जा रहे हैं... और वह बेचारा उनींदी आँखों से पढ़ाई किये जा रहा है । बच्चे थोड़े और बड़े हुए तो क्या बनना है...क्या विषय लेना है.. माँ - बाप ज्यादा टेंसन में रहते हैं । रट - रट कर अच्छे नम्बर लाने वाले कई बच्चे बड़ी कक्षाओं में फिसड्डी हो जाते हैं... और ले - देके पास होने वाले कई बच्चे भविष्य में पढ़ाई के प्रति अधिक जिम्मेदार हो जाते हैं । सफलता का एक ही मन्त्र है... कठिन मेहनत और आत्म विश्वास ...इसका कोई शॉर्टकट नहीं होता । उनके पड़ोसी राजकुमार कहते हैं - सुखीराम आपको कोई मुश्किल नहीं हुई अपने बच्चे को विषय का चुनाव करवाते समय...मुश्किल क्या ? उसको जो पढ़ना था , उसने लिया ...भैया  ..पढ़ना उसको है , परीक्षा में  उसी को लिखना है तो हम कौन होते हैं उसे विषय दिलवाने वाले ....हमने तो बस उसे अपना भला - बुरा परखने की बुद्धि दी है बस ...उसके लिए क्या अच्छा है क्या बुरा ...अगर वह समझ जाये तो खुद ही निर्णय लेगा और उस पर अमल भी करेगा । आपने अपनी बिटिया को जबरदस्ती गणित दिलवाया था ना... फिर क्या हुआ । बेचारी ग्यारहवीं में फेल हो गई । लेकिन दूसरे साल मेरे कहने पर उसे अपनी रुचि का विषय वाणिज्य लेने दिया तो रिजल्ट क्या रहा..जरा बताओ । हाँ.. फर्स्ट डिवीजन से पास हुई वह -- राजकुमार ने जवाब दिया । यही तो हम भी कह रहे..बच्चे पर अपनी पसंद मत थोपो.. उसे अपनी राह स्वयं चुनने दो...उसके बाद वह आपसे कोई मदद माँगे तो जरूर करो..जैसे कॉलेज , स्थान का चुनाव या खर्च को देखकर यदि वह आगे कदम न बढ़ाये तो उसका हौसला बढ़ाओ । अपनी चुनी हुई राह में यदि उसे कोई परेशानी आती हो तो उसमें मदद करो...बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दो , उसका आत्मविश्वास बढ़ाओ , असफलता से हार मत जाये ये दिलासा दो...जीवन बहुत अनमोल है , उसकी कद्र करना सिखाओ ।  जिंदगी ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका एक ही उत्तर हो...इसे जीने के लिए कई ऑप्शन हैं.. ईश्वर जब एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा रास्ता खोल  देता है ।  कई बार असफल  होकर सफलता की मंजिल पाने वालों के उदाहरण भरे पड़े हैं.. उनसे अपने बच्चों को रूबरू कराओ । फिर तो दुखी होने की कोई बात नहीं है... सुख ही सुख होंगे जीवन में ।
    क्या आप भी  सहमत हैं सुखीराम जी की बातों से..तो बच्चों की पढ़ाई को तनाव का कारण मत बनाइये क्योंकि जो होना है वह तो होकर रहेगा । अपने बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार राह चुनने की आजादी दीजिये... सभी विषयों में भरपूर च्वॉइसेस हैं । अगर वह मेहनत करेगा तो जिस विषय , जिस राह को चुनेगा उसमें सफल होगा । तो चिंता जाओ भूल ...जियो कूल- कूल ।
     फिर मिलेंगे --नमस्कार , प्रणाम , जय जोहार ।।
      
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