संस्मरण
#वो स्कूटर प्रेम#
बात बहुत पुरानी है, तब लड़कियों के पास गाड़ी नहीं हुआ करती थी... बहुत हुआ तो किसी को लूना या स्कूटी मिल गई । मेरे लिए गाड़ी चलाना स्वप्न हो गया था और गाड़ी चलाने के प्रति आकर्षण मन में बढ़ता ही जा रहा था । मैं तो सपने में भी अपने आपको गाड़ी चलाते ही देखती । तब मैं आठवी कक्षा में थी..मामाजी के घर बलौदा गई हुई थी गर्मी की छुट्टियों में । मामाजी उस दिन बस से गये थे बिलासपुर । बस , मुझे मौका मिल गया और मैने उनका स्कूटर निकाल लिया उस सँकरी सी उबड़ - खाबड़ गली में । मन में कोई डर तो नहीं था पर आत्म विश्वास गजब का था....पहली बार स्कूटर वो भी बिना किसी बड़े की सहायता लिये... ऑब्जर्वेशन पॉवर जबरदस्त थी ..देखती रहती थी कैसे स्टार्ट करते हैं..कैसे गियर लगाते हैं... उन्हीं निरीक्षणों के बदौलत स्कूटर स्टार्ट कर ली , गियर लगा ली और मेरी गाड़ी चल पड़ी...पर बहुत सी बातें तो हम अनुभवों से सीखते हैं ....ब्रेक और गियर का सामंजस्य स्थापित करना एक बार में सीखने वाली बात नहीं थी...ब्रेकर में उसी स्पीड से गाड़ी कूदा दी और धड़ाक.... गाड़ी के साथ मैं भी जमीन पर । मुहल्ले के एक दो परिचित वहाँ थे , उन्होंने गाड़ी और मुझे उठाया और घर पहुंचाया । मुझे और गाड़ी दोनों को कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ पर अपनी इस डेयरिंग पर थोड़ी डाँट जरूर लगी...सीखने का शौक था तो बताना था ना...गाड़ी ऐसे गली में थोड़ी सीखी जाती है । पर मैंने ऐसे ही सभी गाड़ियों पे हाथ आजमाया..मोटर साइकिल पर भी ।
तब यह बात तो समझ में आ गई कि कोई नया काम सीखना हो तो किसी जानकार व्यक्ति से राय ले लेने में कोई बुराई नहीं । आपके अंदर कितना भी आत्मविश्वास हो फिर भी....हर नया काम शुरुआत में कठिन लगता है पर अभ्यास उसे आसान बना देता है हमेशा ।
आप सबका दिन शुभ हो ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Monday, 21 May 2018
वो स्कूटर प्रेम ( संस्मरण )
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