गरमी म जुराये छांव सही ,
तोर मया दुलार ।
सावन के पहिली फुहार सही,
तोर मया दुलार ।।
बैरी मन के टेडगा बोली,
कर देथे मुंधियार ।
तोर गुरतुर बोली ,
चंदा कस उजियार ।।
जिनगी भर संग देबे ,
करत हंव गोहार ।
जुरमिल के कर लेबो,
भवसागर ल पार ।
भरोसा ले घर कुरिया ल,
राख लेबो संवार ।
मया पिरीत के बंधना मा,
बंधा जाहि संसार ।।
मोर सुख दुख के संगी,
तोर खुसी म जिनगी न्यौछार।
तोर मोर रद्दा एक हे ,
एक हमर घर संसार ।।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
Bhoot sunder
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