Wednesday, 23 May 2018

हो गई मैं आज गुलमोहर

सूने - सूने थे  रास्ते...
उजाड़ था मंजर ...
शहर भी उदास था..
मौसम हुआ पतझर...।
रातें अमावस सी..
दिन  हुई दोपहर...
नदी सूखी - सूखी सी...
ठहरा हुआ समन्दर..।
चाह नहीं कुछ पाने की..
उमंगें  भूलीं डगर..
चलते रहे कदम यूँ ही ..
अँधेरों का कहर...।
शाम बीतती नहीं...
इंतजार में रहबर...
लम्बी काली रातें...
चुभो रही नश्तर ...।
अब आ भी जाओ प्रिय...
राह तकती नजर...
वीरान इस चमन में...
गुलों का  भी हो बसर..।
आना तेरा यूँ जीवन में...
लो बहारों को हो गई खबर..
कल तक थी निष्पत्र जो..
खिल गई डगर- डगर..।
हो गई मैं आज गुलमोहर...।।
स्वरचित- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
For more ... Follow my blog...DIKSHACHAUBE.BLOGSPOT.COM

No comments:

Post a Comment