Friday, 8 June 2018

कॉलेज के दिनों की यादें (संस्मरण )

कॉलेज के दिनों की यादें
    वाह... कितने मधुर पल...उत्साह ...उमंगों से लबरेज यौवन ..कल्पनाओं को वर्तमान में साकार करने की जिजीविषा लिये कॉलेज की दहलीज पर खड़ी थी मैं । इसी जीवन में सब कुछ पा लेने की कोशिश..खुशियों की तलाश में अरमानों के पर फैलाये उड़ती थी चाहतें..कितनी मजेदार होती हैं ये स्मृतियाँ.. जब भी स्मरण करो गुदगुदा जाती हैं मन को और चाहे कहीं भी रहें एक छोटी सी मुस्कान दे जाती हैं होठों को..
      बात उन दिनों की है जब मैं पी. जी. बी. टी. कॉलेज बिलासपुर में बी.एड. की पढ़ाई कर रही थी । मैं अपने मामाजी के घर पर रहकर पढ़ रही थी...मैं कॉलेज की छात्रा प्रतिनिधि थी और बहिर्मुखी व्यक्तित्व की थी तो मुझे सभी शिक्षक ,  छात्र जानते थे । मैं लगभग सभी गतिविधियों में भाग लिया करती थी । उसी समय दिसम्बर में मेरे पापा ने दुर्ग में मेरा विवाह प्रस्ताव दिया था । संयोग से मेरी होने वाली जेठानी का मायका बिलासपुर था और वे वहाँ आई हुई थी और मेरे एक होने वाले ननदोई जो व्याख्याता थे विभाग की तरफ से बी. एड. कर रहे थे । वे मुझे देखने कॉलेज आये और मेरे ननदोई की सहायता से सीधे मेरे पास आये और विनीता गुप्ता के बारे में पूछा । वह दूसरे सेक्शन में थी तो मैंने कहा कि मैं देखकर आती हूँ... मैं उसे बुलाने गई तो उसकी कक्षा छूटी नहीं थी...मैंने वापस आकर उन्हें बताया कि अभी उसकी क्लास लगी हुई है । मुझे धन्यवाद देकर वे चले गए...शाम को हम सबकी अटेंडेंस एक साथ हाल में होती थी ..मैंने विनीता को देखते ही कहा- अरे ! तुझसे कोई मिलने आये थे । वह हँसते हुए बोली वे मुझसे नहीं  , तुझसे ही मिलने आये थे... वो मेरी फ्रेंड की दीदी हैं और दुर्ग में रहती हैं । ओह... मैं तो शॉक्ड थी...ऐसे भी कोई देखने आता है.. कॉलेज की यूनिफॉर्म सफेद  साड़ी में.. अगले दिन मुझे पापा का मैसेज मिला उन्होंने आने वाले रविवार को मुझे घर बुलाया था । उस दिन दुर्ग से सभी आये थे और मुझे अँगूठी पहनाकर चले गए जिनसे मेरी शादी होनेवाली थी उनको छोड़कर । मैंने तो उनकी तस्वीर भी नहीं देखी थी । जनवरी में मेरी शादी तय हो गई थी ...यह जो  अंतराल था इसमें मेरी इतनी खिंचाई हुई कि मत पूछो । कॉलेज की एक मेडम को मेरे ननदोई ने बता दिया था और उन्होंने बाकी सभी शिक्षकों को.. इधर मेरे सभी क्लासमेट्स को शादी के बारे में पता चल चुका था... मेरी हर गतिविधि में कमेंट्स आते ...मन नहीं लग रहा न पढ़ाई में.. मेरे दोस्त उल्टी गिनती गिनाते कि अब दस दिन बचे..अब नौ..एक दिन मैं अटेंडेंस के समय यस बोलना भूल गई तो सबसे अंत में खड़ी होकर सर से अटेंडेंस लगाने को कहा...वे पहले मुस्कुराने लगे फिर बोले..ध्यान दुर्ग में था क्या...बाप रे ! मैं तो शर्म के मारे लाल हो गई । मेरे भावी पति ने मुझे देखा नहीं था..जब वे
शादी का कार्ड बाँटने बिलासपुर आये तो मुझसे मिलने आये...कॉलेज में क्रीड़ा प्रतियोगिता हो रही थी... मैं लम्बी कूद का अभ्यास कर रही थी... कपड़ों में , हाथ - पैरों में धूल लगा हुआ था... किसी ने मुझसे कहा दीक्षा तुझसे कोई मिलने आया है...बाहर जाने पर उनके एक दोस्त जो साथ आये थे उन्होंने कहा..ये समीर है और मैं इसका दोस्त राजेंद्र । मुझे समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूँ...पहली बार अपने भावी पति को देख रही थी और इस हाल में...अभी क्या कुछ क्लास है...नहीं लम्बी कूद की प्रैक्टिस कर रही थी... थोड़ा सकुचाते हुए मैंने कहा पता नहीं क्या सोच रहे होंगे । चलिये ...सामने से चाय पीकर आते हैं उनके दोस्त ने कहा था और जब मैं अपना बैग लेने गई तो मेरे बदमाश दोस्तों ने बिना बताए ही समझ लिया कि ये मुझसे मिलने आये हैं...बस फिर क्या था मैं और मेरे दस - पन्द्रह दोस्त उनके साथ चाय पीने गये ...मेरे पति देव ने उन सबको जो खाना चाहे ऑर्डर कर लीजिए कहकर खुश कर दिया और शायद उनकी इसी सरलता से प्रसन्न होकर उन्होंने चाय पीकर ही हमें छोड़ दिया...जाते- जाते कान में फुसफुसाते गये ...क्या बात हुई आकर बताना । दोस्त ऐसे ही होते हैं आपकी खुशी - गम सबमें बिना बुलाये शामिल हो जाते हैं और यादों का हिस्सा बन जाते हैं । अब सोचती हूँ तो महसूस करती हूँ उनकी छेड़छाड़ , हँसी - मजाक के बिना वे पल क्या इतने मधुर होते ? कॉलेज लाइफ की बहुत सारी यादें हैं पर ये मेरे लिए सबसे खूबसूरत हैं क्योंकि आज भी उन बातों को याद करके मेरी हँसी छूट जाती है ।

स्वरचित  - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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