Friday, 1 June 2018

डर ( लघुकथा )

यामिनी , विनीता , स्नेहा तीनों  ने एक ही कॉलेज में प्रवेश लिया था...साथ - साथ  रहना ,  खाना  , पढ़ना
खूब जमती थी उनकी ।  हॉस्टल से कॉलेज जाते वक्त कुछ  बदमाश लड़के  अक्सर लड़कियों को परेशान करते थे , उन पर छींटाकशी करते थे...एक्सरे की नजरों से उनका मुआयना करते थे...नश्तर की तरह चुभती थी वह नजर ....आहत हो जाती थीं वे सभी पर प्रिंसिपल से शिकायत करने पर भी उन पर कोई असर नहीं हुआ था । बड़े घरों के बिगड़े बच्चे थे वे...न पढ़ाई से मतलब था न भविष्य की चिंता । पता नहीं इन्हें घर में कैसी शिक्षा दी जाती है , आखिर इनके घर में भी तो कोई औरत होगी न...उनकी माँ , बहन  ? फिर दूसरी महिलाओं की इज्जत क्यों नहीं करते ये लोग...छी...कितनी गन्दी नजर है उनकी...स्नेहा ने कहा था । आखिर कब तक यार....कब तक डरेंगे हम उनसे...हम यहाँ अपने परिवार को छोड़कर पढ़ने आई हैं... वापस घर चले जायें... और क्या उपाय है ?
   उपाय है... उनके ग्रुप की सबसे साहसी विनीता ने कहा था... सब उसकी तरफ देखने लगे थे...हम लोग सभी एक हो जाएं और अपने डर पर काबू पा लें...जितना हम डर कर सिमटते जाएंगे वे हम पर हावी होते जायेंगे... एक बार हिम्मत करने की देर है.. फिर उनके हौसले पस्त हो जायेंगे । फिर पुलिस तो है ही मदद के लिए... लेकिन पहले हमें अपने डर से लड़ना होगा..क्या तैयार हो तुम लोग । हॉस्टल वार्डन भी इस समस्या से वाकिफ थी ...लड़कियों के रिक्वेस्ट पर उन्होंने हॉस्टल में सेल्फ डिफेंस के लिए कराटे की कक्षा लगाने की व्यवस्था करवा दी थी क्योंकि युद्ध से पूर्व तैयारी की आवश्यकता होती है ।
      एक निश्चित अवधि के पश्चात वे तैयार थे...विद्रोह का बिगुल बजाने को और शुरुआत  एक दिन उन्होंने कर ही दिया था । जैसे ही किसी ने उन पर फब्ती कसी..उसकी हो गई पिटाई...एक नहीं कई घटनाएं हुई
लोग लड़कियों की हिम्मत की प्रशंसा करने लगे थे और 
उनकी बदनामी फैलने लगी थी... चुपचाप छेडछाड सहने वाली लड़कियाँ विरोध करने लगी थी  और पूरा समुदाय उनके पक्ष में आ गया था । अब तो कॉलेज के लड़के भी उनके साथ हो गए थे । लिहाजा उन लड़कों ने  अब छेड़छाड़ करने से तौबा कर  लिया था...।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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