उन्हें हड़ताल करते पच्चीस दिन हो गए थे...पिछले माह तो तनख्वाह मिली नहीं थी ...इस बार मिलने का सवाल ही नहीं था ...वैसे भी कमाओ खाओ वाली स्थिति रहती है... कोई जमापूंजी तो है नहीं कि उससे काम चलाते । पत्नी , बच्चों का बेहाल चेहरा उन्हें कमजोर कर रहा था ...बेबसी तोड़ रही थी उनकी हिम्मत । सभी जानते थे अभी नहीं तो कभी नहीं...इस बार वेतन नहीं बढ़ा तो फिर कभी नहीं बढ़ेगा । बढ़ती महंगाई में वेतन बढ़ाने की आवश्यकता हर कोई समझ रहा था पर प्रबंधन नहीं । वे जानते थे भूख जल्दी ही यह हड़ताल तोड़ देगी इसलिए उनके बिना शर्त वापस लौटने का इंतजार कर रहे थे ।
पुरुषों की टूटती हिम्मत देखकर सावित्री आगे आई थी... सबसे पहले उसने अपना मंगलसूत्र निकालकर रख दिया और कहा - आप लोग हिम्मत मत हारिये ...हम व्यवस्था करेंगे खाने पीने की... फिर और भी महिलाएं आगे आई ...बारी बारी अपने जेवर गिरवी रखकर..सड़कों पर घूमकर मदद माँगेगे... लोग जरूर साथ देंगे क्योंकि हम गलत नहीं है... अपने परिवार के पालन - पोषण के लिए बढ़ती महंगाई के साथ वेतन बढ़ाने की माँग करना कोई गलत काम नहीं है । नारी शक्ति के सहयोग ने एक नई जान फूँक दी थी आंदोलन में... कल तक कमजोर पड़ रहा आंदोलन और मुखर हो उठा था...परिस्थितियां बिल्कुल बदल गई थी... और प्रबंधन के विचार भी । उन्होंने बदलाव को महसूस कर लिया था और उनकी वेतनवृद्धि की माँग मान ली थी ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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