Tuesday, 7 August 2018

धोखा ( लघुकथा )

धोखा ( लघुकथा )
तिनका - तिनका जोड़कर यह आशियाना बनाया था मंजू और मुकेश ने...कितनी मेहनत से पाई - पाई जोड़ी थी ...एक घर ...अपना घर होने के एहसास ने उन्हें  अपनी सभी जरूरतों को सीमित करने  को बाध्य कर दिया था , अपने सारे शौकों को भुलाकर वे सिर्फ इसी के लिए दिन - रात एक कर रहे थे । आज उनका ख्वाब पूरा होने जा रहा था... उन्होंने घर पसन्द कर लिया था । उस घर के मालिक अपने बेटे के पास रहने अमेरिका जा रहे थे हमेशा के लिए इसलिए सस्ते में ही मकान बेच रहे थे...जल्दी निकलना है कहकर उन्होंने सभी फॉर्मेलिटीज पूरी करने की बड़ी हड़बड़ी मचाई ..कम कीमत में इतना बड़ा मकान ...ऊपर से समय की कमी ..मंजू लोग भी उनके बारे में कुछ पता नहीं लगा सके  और सौदा पक्का कर दिया । पेमेंट हो गया..घर के कागजात देकर वे चले गए बाद में पता चला कि जिन्होंने अपना बोलकर घर बेचा था , वे तो स्वयं किराएदार थे...कागजात भी फर्जी निकले । उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखाई पर उनका कुछ पता नहीं चला.. जीवन भर की कमाई  लुट चुकी थी , धोखे का यह घात असहनीय था...पर क्या किया जा सकता था..मानवता पर से उनका विश्वास उठ चुका था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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