उस रक्षाबन्धन के पहले भाई से मेरी जोरदार बहस हुई थी ...मम्मी बाजार गई हुई थी और मुझे कुछ काम ( रसोई का ) देकर गई थीं ,मैं उसमें व्यस्त हो कर भाई का दिया काम नहीं कर पाई..उन्होंने मुझे एक थप्पड़ मार दिया...फिर तो मैं भी अड़ गईं , अब तो उनकी कोई बात मानूँगी ही नहीं...मम्मी वापस आई तो मैं मुँह फुलाये बैठी थी...रोटियाँ बना दी थी तो मम्मी तो मुझसे खुश थी ही..भाई को खूब डाँट पड़ी...मम्मी ने कहा , आइंदा उसको हाथ भी लगाया तो ठीक नहीं होगा । भाई को डाँट पड़ी तो मुझे बहुत मजा आया । नाराजगी में मैंने निश्चय कर लिया कि इस बार राखी नहीं बाँधूंगी ...मगर इस घटना के कुछ दिन बाद अचानक उनके सिर के आधे हिस्से में जोरदार दर्द होने लगा , इतना असहनीय दर्द कि वे रोने , चिल्लाने लगे...उन्हें इस पीड़ा में देखकर सभी दुखी थे , मैं तो सबसे अधिक रोई थी ...डॉक्टर ने आकर इंजेक्शन दिया तब कहीं जाकर उनका दर्द ठीक हुआ । मुझे बहुत पश्चाताप हुआ कि मैंने भाई को राखी नहीं बाँधने की बात सोची इसीलिए ऐसा हुआ...मैंने भगवान से प्रार्थना की कि है भगवान अब मेरे भाई को कभी ऐसा दर्द मत देना...फिर कभी मैं ऐसा सोचूंगी भी नहीं ,चाहे वे मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करें । उस राखी पर मैंने बहुत ही मन से सारी विधियाँ की ताकि मेरे भाइयों पर कोई विपत्ति न आये और यह समझ भी आया कि बहन की दुआ क्यों भाई के लिए आवश्यक है । कभी गुस्से में भी अपने भाई के लिए बुरा न कहें क्योंकि बहन की दुआएं तुरंत कुबूल हो जाती हैं ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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