Monday, 3 September 2018

कान्हा तेरे रंग अनेक

प्रेम को सहज , अभूतपूर्व और योग बनाने वाले श्री कृष्ण के ढंग ही निराले हैं...इसीलिये उनके जीवन के हर पहलू पर बहुत कुछ लिखा गया और लिखा जाता रहेगा । उनके प्रेम की प्यास बुझेगी नहीं और बढ़ती जाएगी । बिहारी कवि के अनुसार -
या अनुरागी चित्त की , गति समुझै नहीं कोय ।
ज्यों - ज्यों बूड़े श्याम रंग , त्यों - त्यों उज्ज्वल होय ।।
  कभी कान्हा  बाल लीला दिखाते हुए चाँद को लेने की जिद करते हैं तो सूरदास को कहना पड़ता है -
      मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लइहौ ,
     जइहौ लोट अबहिं धरनी पर ,
       तेरी गोद न आइहौं ।
माखन के बहाने गोपियों के साथ छेड़छाड़ करने से भी नहीं चूकते....माखन चुराकर खा लेते हैं और साफ इंकार कर जाते हैं -- मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
गोपियाँ माता यशोदा को सबूत भी देती हैं , देखिये अभी तक कान्हा के मुख पर माखन लगा हुआ है तो भोली सूरत बना कर कहते हैं - ये सारे सखा ग्वाल - गोपाल मुझसे जलते हैं इसलिए जबरन मेरे मुख पर माखन लगा देते हैं ...बड़े नटखट हैं माखनचोर कौन नहीं जानता..पर उनकी इस लीला के बलिहारी हैं सब ।
राधा के प्रेम की बात ही मत पूछिए.. वह तो कृष्ण  के बिना  एक पल भी रहना नहीं चाहती इसीलिए उनकी मुरली को छिपा देती हैं ताकि कृष्ण इसी बहाने उनसे बात करें और राधा उनकी बातों का आनन्द ले सके ।
बतरस लालच लाल की , मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करे , भौंहनि हंसे , देन कहै नटी जाय ।।
    कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद गोपियाँ उनके प्रेम को अपने हृदय से भुला नहीं पाती और न ही भुलाना चाहती हैं ।  गोकुल के ग्वाले , गोपियाँ , गायें यहाँ तक कि पेड़ - पौधों पर भी कृष्ण के चले जाने का असर हुआ है और वे सब उनके वियोग में दुखी हैं । जिन पर असर नहीं  हुआ उन्हें गोपियाँ   उलाहना देती हैं -
मधुबन तुम कत रहत हरे ।
बिरह - वियोग में श्याम सुंदर के ,
ठाढ़े क्यों न जरे ।।
उद्धव को अपने ब्रह्मज्ञान पर बड़ा अभिमान है इसलिए कृष्ण उन्हें गोकुल भेजते हैं कि गोपियों को मेरा सन्देशा पहुँचा आना और साथ ही उन्हें ब्रह्मज्ञान देना ताकि वे मेरे वियोग में दुखी न हों और मुझे भूल जाएं । पर जब कृष्ण सन्देश लिखने बैठते हैं तो उनकी आँखों से इतने आँसू बहते हैं... वे एक शब्द लिखे बिना पत्र भेज देते हैं। गोकुल में भी गोपियों का यही हाल है.. उस पत्र को अपने सीने से लगा - लगा कर वे भी  रोती हैं । भावों का आदान - प्रदान बिना शब्दों के.. उद्धव के लिए  यह सब  कुछ अद्भुत है ।  गोपियों की विरहावस्था का अभूतपूर्व वर्णन किया है घनानंद ने --  वे कहती हैं
हीन भये जल मीन अधीन ,
कहा कहू मो अकुलानी समाने ।
नीर सनेही को लाए कलंक ,
निरास है कायर त्यागत प्रानै ।
मछली जल के बिना अपने प्राण दे देती है , प्रेम में जान देना कायरता है , कलंक है...असली प्रेम का प्रमाण तो यह है कि अपने प्रिय के बिना आप जीकर दिखाएँ ।
उनका तर्क देखिये -
अति सूधो प्रेम को मारग , जहाँ नेकु सयानप बाक नहीं ,
जहां सांचे चले तजि आपुनपो ,झिझकें कपटी जो निसंक नहीं ।
घनानन्द प्यारे सुजान सुनौ , इत एक तै दूसरो आँक नहीं ।
तुम कोन धौं पाटी पढ़े हो लला , मन लेहु पै देहु छँटाक नहीं ।
     गोपियाँ उद्धव से कहती हैं उनके मन रूपी दर्पण में कृष्ण की छवि बस गई है अपने कठोर ब्रह्मज्ञान रूपी पत्थर से उस दर्पण को न तोड़ो...अभी तो उनके एक ही रूप में हम खो गये हैं , अगर यह दर्पण टूट गया तो उनकी अनेक छवियाँ हो जाएंगी तब हमारा क्या होगा ?
वे उद्धव से पूछती हैं - निर्गुण कोन देस को वासी ?
    उद्धव गोपियों को तो नहीं सुधार सके पर उनसे विशुद्ध प्रेम की शिक्षा लेकर मथुरा जा रहे हैं... कृष्ण -प्रेम में उनके नैन छलक रहे हैं.. पैर धरती पर सही स्थान पर पड़ नहीं रहे..प्रेममद में बहके हुए हैं ।
    मीराबाई ने तो सरेआम घोषणा कर दी थी -
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर - मुकुट मेरो पति सोई ।।
रसखान कवि तो अगले सभी जनमों में गोकुल में  जन्म लेना चाहते हैं ..मनुष्य हों तो ग्वाले के रूप में , पत्थर हों तो गोवर्धन पर्वत के रूप में तथा चौपाये  के रूप में जन्म हो तो गोकुल की गायों के बीच  हो जहाँ हर वस्तु को कृष्ण प्रेम की सौगात मिली है -
मानुष हों तो वही रसखानि
बसौ बिच गोकुल गांव के ग्वारन
पाहन हौ तो वही जिनको
कान्ह करे उंगली में धारण ।
    सभी कान्ह - प्रेम में रंगे हैं...जैसे चासनी में भीगा पकवान...पानी में घुला नमक ..
कीने हूं कोटिक जतन , अब कहि काढ़े कौनु ।
मो मन मोहन रूप मिलि , पानी में ज्यों लोनु ।।
  प्रेम के माधुर्य मूरत हैं कृष्ण...उनके रूप अनेक हैं... लीलाएँ अनेक हैं... वो संयोग में भी हैं वियोग में भी ...
वो रसभोगी भी हैं कर्मयोगी भी....ज्ञानी , ध्यानी  , साधारण मनुष्य हर व्यक्ति की उन तक पहुँच है और उनके हृदय में सभी के लिए स्थान है... वो कभी एक सर्वसाधारण पुरूष बन जाते हैं तो कभी समस्त सृष्टि को अपने मुख में समाये  महाशक्ति... मानव के रूप में जन्मे उन महानायक को कोटिशः प्रणाम । आप सबको कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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