कमजोर हो जाये जब मेरी काया ,
जब ये बूढ़े हाथ - पैर काँपने लगे ...
इन्हीं हाथों ने दिया था तुम्हें सहारा ,
उँगली पकड़कर चलना सिखाया...
डगमगाते वो कदम तुम भुला न देना ।
मेरी सदाएं याद कर मुस्कुरा देना ।।
सुन न पाउँ तुम्हारा कहा ,
सुनाने लगूँ अपना वही दुखड़ा...
मेरे भुलक्कड़पन पर न खीझना ,
एक ही कहानी तूने कई बार सुना ,
बचपन की वो आदत भुला न देना ।
मेरा धैर्य याद कर मुस्कुरा देना ।।
बुरा गर लगे मेरा खाँसना ,
पड़े प्यारी नींदों को त्यागना ,
तुझे दुलराते थपकाते काटी कई रातें ,
लोरियों को मेरे तुम भुला न देना ।
मेरा स्नेह याद कर मुस्कुरा देना ।।
*******
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
********
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Saturday, 22 September 2018
भुला न देना
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment