दूर क्षितिज में आँखों से ओझल ,
मकानों , पेड़ों के साये में झिलमिल ,
नज़रों पे कैसा सम्मोहन हो रहा है ।
अंबर - धरा का मिलन हो रहा है ।
रवि ने बिखेरी है धानी रंगोली ,
अलबेली कलियों ने आँखें खोली ,
पुष्पित सारा चमन हो रहा है ।
सुरमयी सन्ध्या का आगमन हो रहा है ।
सुरभित पवन है , पुलकित नयन है ,
भीगा तन और हर्षाया मन है ,
रिमझिम फुहारों का आगमन हो रहा है ।
प्यासी धरा का आचमन हो रहा है ।
शाखों को झुकाए , पत्तों को हिलाए ,
बेलों की लचकती कमर छू जाए ,
कलियों को छेड़े , फूलों को चूमे ।
बड़ा मनचला ये पवन हो रहा है ।
अम्बर - धरा का मिलन हो रहा है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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