राहुल अपनी दुकान बंद करके लौट रहा था । रास्ते में
उसे एक थैला मिला ...डरते हुए खोलकर देखा तो चकित रह गया... उसमें रुपयों का एक बड़ा बंडल एक कपड़े में लपेट कर रखा गया था । अचानक इतने रुपये मिलने पर उसका मन प्रसन्न हो गया क्योंकि त्योहार सामने था और उसकी आर्थिक स्थिति खराब थी । लगता है ईश्वर ने उसकी विपत्ति दूर करने के लिए ही यह व्यवस्था की है । घर पहुँचकर पत्नी रमा से सब हाल कह सुनाया और बहुत सम्भालकर रुपयों को ट्रंक में रख दिया । रमा की बातों ने सिक्के के दूसरे पहलू की ओर उसका ध्यान खींचा -
आपको रुपये मिले तो आप खुश हो रहे हैं लेकिन सोचिए जिसके रुपये गुम हुए हैं वो कितनी तकलीफ में होंगे , शायद ये उसके जीवन भर की कमाई होगी या उसने किसी जरूरी काम के लिए लोन लिया होगा ।
हाँ रमा , तुम कह तो सही रही हो पर इतने बड़े शहर में यह पता लगाना बहुत मुश्किल होगा कि इसका असली मालिक कौन है । समय गुजरता गया , उन पैसों का उपयोग कर राहुल ने अपना व्यवसाय बढ़ा लिया... लेकिन एक निश्चित रकम वह बैंक में जमा करता गया ताकि कभी उस कर्ज को वापस भी कर पाये । कुछ कल्याणकारी कार्यों के लिए भी उसने रुपये खर्च किये ।
पर उसका मन एक बोझ महसूस करता कि मिले हुए रुपयों के असली मालिक को ढूँढने का उसने प्रयास नहीं किया । एक दिन अपने दुकान के पास उसने एक बुजुर्ग को कुछ ढूँढते देखा ...वह अपनी बेटी की शादी के लिए बैंक से रुपये निकालने आये थे और वह कहीं खो गए थे । जिंदगी भर की जमापूंजी वक्त पर काम नहीं आई , शादी में अधिक दिन भी नहीं रह गए थे ..अब खुदकुशी करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था । राहुल को ईश्वर की मर्जी समझ आ गई थी... ईश्वर चाहता है कि मैं उस वृद्ध की मदद करूँ तभी तो यह घटना उसके दुकान के सामने ही हुई । राहुल ने उस वृद्ध को अपने घर ले जाकर खाना खिलाया और उनके विश्राम करते तक बैंक में जमा रुपये उसे लाकर दे दिए । वे बुजुर्ग उसे देखते ही रह गए , बेटा तुम भगवान बन कर मेरी मदद करने आ गए... मैं तुम्हारा यह एहसान कैसे उतारूंगा । नहीं बाबा , आपको ये रुपये वापस करने की कोई आवश्यकता नहीं.. मेरी जरूरत के वक्त ईश्वर ने ये रुपये मुझ तक भिजवाए थे , अब वो आपको भिजवा रहे हैं । मैं तो सिर्फ एक माध्यम हूँ ...बाद में आपको कभी कोई जरूरतमंद दिखे तो आप उसकी मदद कर दीजियेगा... अच्छाई का उजाला जितना फैलेगा , बुराई का अंधकार क्षेत्र कम होते जाएगा । मानवता की यही पहचान है और इस पहचान को बनाये रखने के लिए छोटा सा प्रयास तो सबको करना ही होगा । बुजुर्ग की आँखों से आँसू अनवरत बह रहे थे... उन्होंने राहुल का माथा चूम लिया और उस पर अपने आशीषों की बारिश कर दी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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