16 जनवरी , वह खास तारीख जब मेरे मम्मी - पापा ने पूरे विश्वास के साथ मेरा हाथ तुम्हारे हाथों में सौंपा ...धड़कते दिल और काँपते कदमों से उन हाथों को थाम कर मैंने तुम्हारे आँगन में प्रवेश किया । एक नया परिवेश , नये रिश्ते , नई जिमेदारियाँ..... सामंजस्य
बनाने में भरपूर मदद की तुमने । तुम्हारे खुशनुमा साथ ने भिगो दिया तन -मन...जीवनपथ पर खुशियों के फूल
बिखेर दिये तुमने ....प्यार की भीनी मादक महक से भर उठी अपनी बगिया ...निशा के तिमिरांचल में उमंगों के जुगनू जगमगा उठे ...चाँद - तारों ने अपनी सुधामयी चाँदनी की बारिश कर दी मेरे आँगन में...देववृक्ष पारिजात ने अपने स्वर्णिम डंठलों वाले पुष्प अर्पित कर दिये मेरे दाम्पत्य जीवन में ...शांत सरोवर में अमल कमलिनी की तरह सौंदर्य व प्रेम से अभिसिक्त मेरी कमनीय काया अनुराग राग से भर उठी, क्षिति की सोंधी महक की तरह सुवासित हो गया जीवन...तुम्हारे धीर - गम्भीर , सन्तोषी व्यक्तित्व से मैंने बहुत कुछ सीखा...कई गलतियां की और अपने आप में सुधार भी किया ...तुमने मुझे सिखाया कि सफलता के लिए सम्पूर्ण होना जरूरी नहीं है... हमें जीवन को कमियों के साथ स्वीकारना होता है और हर परिस्थिति में खुश रहना ही जीवन जीने का सही ढंग है । अपनी कमियों का रोना रोते हुए तो हम अपने वर्तमान को भी खो देंगे । हार में , जीत में , दुःख में , सुख में , जीवन के उतार- चढ़ाव में अपना प्यार भरा साथ दिया तुमने....बाईस वर्ष के वैवाहिक जीवन का सफर इतना प्यारा और मधुर रहा..सिर्फ तुम्हारी सूझ , दृढ़ता और विश्वास से...स्नेह की यह धारा अनवरत प्रवाहित होती रहे और हम - तुम इस राह पर यूँ ही साथ चलते रहें..यही ईश्वर से प्रार्थना है । मैं सदैव तुम्हारे हृदय राज्य की रानी बनी रहूँ और तुम मेरे प्राणप्रिय....।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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