प्रतियोगिता 31
छठ पर्व
प्रकृति और मानव के अटूट रिश्तों का पर्व है यह...मनुष्य प्रकृति के उपादानों पर निर्भर है... उसके हर क्रियाकलाप चाँद , सूरज , अम्बर , धरा , पेड़ - पौधे , अग्नि ,पवन , जल इत्यादि के आस - पास ही घटित होते हैं । प्रकृति और मनुष्य एक - दूसरे के पूरक हैं और प्रकृति के संरक्षण के द्वारा ही मनुष्य अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता है । हमारी परम्पराएं हमें प्रकृति से जोड़ती हैं हमारे संस्कार हमें उनका आदर करना सिखाते हैं । छठ पर्व भी उनमें से एक है जब मनुष्य अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिये सूर्य देव की शरण में जाता है । छठ देवी सूर्य की बहन है और पौराणिक कथाओं में सन्तान की सुरक्षा , स्वास्थ्य हेतु उनकी आराधना का विधान है ।
छठ पर्व का प्रारंभ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को होता है जिसे नहाय खाय का दिन कहा जाता है...उपवास करने वाली स्त्रियाँ नदी या तालाब में स्नान कर अपने तन और मन को शुद्ध करती हैं और दाल चावल का भोजन करती हैं.. पंचमी तिथि को निर्जला व्रत करती हैं जिसे खरना कहा जाता है.. तीसरे दिन षष्ठी को नदी के घाट पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देकर अपने पूजन को पूर्णता प्रदान करती हैं... चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य के पूजन के पश्चात केला , सेब व गन्ने का भोग - प्रसादी ग्रहण करती हैं । इस पूरे व्रत की विधि में शुद्धता व पवित्रता पर बल दिया जाता है , इसके प्रसाद को बहुत सावधानी से , अपने हाथों से सफाई के साथ तैयार किया जाता है । अपनी संतान की रक्षा , परिवार की सुख समृद्धि की मंगल कामना करते हुए महिलाएं छठी देवी की प्रार्थना करती हैं , मंगल गीत गाते हुए व्रत करती हैं और तन मन की पवित्रता के साथ , श्रद्धा पूर्ण वातावरण में पूजन विधि को सम्पन्न करती हैं ।
छठ मैया करना अमर सुहाग..
तोहरे दरस से जागे भाग...
सुख - समृद्धि से भरे अंगना..
बाढे खेले मोर ललना ....
तोहरे कृपा से मिटे सन्ताप...
जग में सदा रहे पुण्य प्रताप..
सूर्यदेव अर्ध्य करो स्वीकार..
धन्य करो जिंदगी हमार..
दुख - दारिद्र्य मिटा देना...
सबको मनवांछित फल देना...
सदा अपनी शरण रखना..
भूल हमारी क्षमा करना...🙏🙏
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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