Sunday, 25 November 2018

छुट्टी के मायने ( लघुकथा )

आज संडे है ....रेणु और राजीव  दोनों की छुट्टी  रहती है । आठ बजे सोकर उठे पतिदेव को चाय का कप थमाते हुए रेणु ने याद दिलाया..न्यूजपेपर  बेचना था जी , ढेर सारे हो गए हैं । आज नहीं जाऊंगा यार ...फिर कभी । नाश्ते के बाद सोने का दूसरा दौर और खाने के बाद तीसरी झपकी होने पर ही छुट्टी सार्थक लगती है राजीव को और रेणु... छुट्टी के मायने पुरुषों के लिए आराम और  महिलाओं , चाहे घरेलू हों या कामकाजी उनके लिए ढेर सारे  काम। । सुबह उठकर पूरे सप्ताह के कपड़े धोना , नाश्ता बनाना , सिंक , चिमनी , रसोई , बाथरूम की सफाई करना , फिर खाना बनाना इतने  सारे काम निपटा कर बिस्तर पर लेटी तो कमर दर्द के कारण  आह  निकल पड़ी । बिस्तर पर लेटते ही जैसे मच्छर आसपास घूमने लगते हैं वैसे ही पेंडिंग  काम याद आने लगते हैं.. ओह ! रात  के लिए सब्जी नहीं है..गेहूँ पिसवाना है और सूखे कपडे निकालने हैं.. उसने
कम्बल सिर के ऊपर तान लिया और आँखें बंद कर ली...मच्छरों से बचने के लिए या पेंडिंग कामों से ....।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , छत्तीसगढ़

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