Tuesday, 26 February 2019

परीक्षा और हम

जीवन है एक परीक्षा , सबमें  ईश्वर की इच्छा ..
साहस से सफल होवे , सरसिज सा मन होवे ।।

जहाँ झूठ वहाँ पाप है , जहाँ सूर्य वहाँ ताप ...
परिश्रमी , कर्मनिष्ठ  का जग में बढ़े प्रताप ।
शुभ घड़ी की हो प्रतीक्षा , धर्म - कर्म की शिक्षा..
कुविचार विफल होवे , सरसिज सा मन होवे ।।

जहाँ चाह वहाँ राह है , जहाँ गुरु वहाँ ज्ञान..
मन की गहराई अथाह है , अपने को पहचान।
लेकर चलें  शुभेच्छा , मनन कर गुरु की दीक्षा ...
जीवन में सफल होवे , सरसिज सा मन होवे ।।

वसुंधरा  ने गर्भ में  बहुमूल्य  रत्न  छिपाया ..
सागर की गहराई में जो उतरा मोती  पाया ।
प्रयासों की हो समीक्षा , कर्मों की हो परीक्षा..
जीवन मंगल होवे , सरसिज सा मन होवे ।।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 20 February 2019

स्पर्श

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ...
जिसने भींची थी उनकी उंगलियाँ ,
पहली बार अपनी मुट्ठी में और...
कराया था अपने वजूद का एहसास ।

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ....
जिसकी उंगली थाम पग - पग ,
उन्होंने चलना सिखाया था ।

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं....
जिनकी गर्माहट छू - छूकर ,
जागते थे वे सारी रात ...

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जो मेला घुमाते वक्त ,
कस जाते थे उनकी हथेलियों में...

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जिन्हें उसकी  परीक्षा के पहले ,
थपकी देकर वे ढाढ़स बंधाते थे...

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जो आज उन्हें नहलाते हैं ,
खाना खिलाते , दवा देते हैं..

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं....
मुँह से गिरती लार , जूठन को पोंछते ,
बीमार देह की बोरियत मिटाने ,
सहारा देकर टहलाते ये हाथ...

ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
अस्सी वर्ष पुरानी कैंसरग्रस्त देह ,
क्यों ढूँढती है वही जानी - पहचानी स्पर्श...

ये हाथ वो हाथ नहीं  हैं...
जिनसे उनका कोई रिश्ता हो ,
कोई लेन - देन हो...

ये हाथ  वो हाथ नहीं हैं...
पर स्नेह की उष्णता लिए हुए ,
भले लगने लगे हैं...

पर इन हाथों को उन ...
हाथों ने  ही उपलब्ध कराया ,
चंद रुपयों के बदले...

तीमारदारी करते ये हाथ...
न कोई रिश्ता न कोई अनुबंध ,
क्यों बसी इनमें प्रेम - गन्ध...

क्या रुपये चुका सकते मोल...
इस स्नेह - उपबन्ध का  ,
अपने से लगने लगे है ये हाथ...

ये हाथ  वो  हाथ हैं...
जिस स्पर्श का इंतजार ,
करते रहे वे बरसों....

उनकी मृत देह का ,
अग्नि - संस्कार कर रहे ये हाथ...
पता नहीं क्यों  आज ,
लग रहे  अपरिचित से....
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ।

स्वरचित  -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 19 February 2019

सबक ( कहानी )

  संध्या  अपनी सहेलियों के साथ जब भी कॉलेज जाने के लिए निकलती , चौक के पास खड़े लड़के भद्दे कमेंट्स करते , सीटी बजाते । लड़कियों का वहाँ से निकलना मुश्किल हो गया था परन्तु उनसे बहस करने या उनका विरोध करने से वे डरते थे । घर पर भी सबके माता - पिता यही कहते कि  चुपचाप अपने  रास्ते आया जाया करो  वो लोग आवारा किस्म के लड़के हैं , उनसे लड़ने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वे सुधरने वाले नहीं हैं । 
         संध्या के घर की पूजा में उसके चाचा शहर से अपने परिवार के साथ आये हुए थे । ईशा उसके चाचा की लड़की  बहुत ही स्मार्ट लड़की थी , वह अपने स्कूल में बॉलीबाल की अच्छी खिलाड़ी थी और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार खेलने जा चुकी थी । संध्या ईशा को अपने साथ घुमाने ले जा रही थी तो चौक में फिर उन्हीं बदमाश लड़कों से सामना हुआ और उनकी छीटाकशी सुननी पड़ी । ईशा को यह सब देखकर बहुत बुरा लगा...वह तो तुरंत उन्हें मुँहतोड़ जवाब देना चाहती थी पर संध्या ने उसे रोक दिया  और जाते हुए उसे बताया कि यह तो  उन्हें रोज ही झेलना पड़ता है । ईशा ने कहा - तुम लोग सभी सहेलियाँ मिलकर उन्हें सबक क्यों नहीं सिखाते या पुलिस  थाने में उनकी  शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराते ।  आजकल लड़कियों की सुरक्षा के लिए कितने सारे कानून बन गए हैं , पुलिस उन्हें एक ही दिन में सही कर देती ।संध्या ने कहा -   चाहते तो हम सब भी यही हैं पर हमारे माता - पिता ही हमारे साथ नहीं हैं , वे ही हमें विरोध करने से मना करते हैं ।लेकिन संध्या ,  ऐसा करना तो उन्हें बढ़ावा देना है , आज वे सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं , कल किसी  के साथ छेड़छाड़ भी करने लगेंगे तब ये जागेंगे क्या ? फोड़ा नासूर  बन जाये उससे पहले उसका इलाज करना आवश्यक है । मंदिर से लौटते वक्त ईशा ने कुछ ठान लिया था ...फिर वहीं पहुँचने पर जैसे ही उन लड़कों ने उन पर टिप्पणियां करनी शुरू की  , ईशा ठिठककर खड़ी हो गई...अपनी मुट्ठी बाँधते हुए उसने कहा- क्या कहा जरा फिर से कहना तो ! अचानक यह विरोध आने की उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी , कुछ देर के लिए वे ठिठके रहे । फिर उनमें से एक  ने हिम्मत दिखाते हुए दादागीरी दिखाने की कोशिश की तो ईशा ने कसकर एक जोर का तमाचा उसके गाल पर लगा दिया । झन्नाटेदार चांटे के पड़ते ही उसका चेहरा देखने लायक हो गया । उसके साथ खड़े बाकी लड़के भी चुपचाप खिसकने लगे । ईशा ने उन्हें लगभग डाँटते हुए कहा - शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह की भद्दी टिप्पणियाँ करते हुए । कभी सोचा है कि किसी ने तुम्हारी माँ या बहन को ये सब कहा तो तुम्हें कैसा लगेगा ? कभी सोचा है कि यदि ये लड़कियाँ पुलिस थाने में तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगी  तो तुम्हारे कैरियर का क्या होगा ? कहीं नौकरी मिलेगी तुम्हें ? कभी भी अपने सामने वाले को कमजोर मत समझना । वह लड़का सॉरी बोलकर चला गया ..
   .वहाँ एकत्रित हुए लोग ईशा के साहस की प्रशंसा कर रहे थे । संध्या सोच रही थी काश ! यह हिम्मत हमने पहले दिखा दी होती तो इतने दिन घुट - घुट कर  , डर कर नहीं रहना पड़ता । दो दिनों के बाद ईशा लोग चले गए । उसके जाने के कई दिन बाद संध्या ने ईशा को फोनकर अब उन लड़कों के सुधर जाने की खुशखबरी सुनाई और कहा- तुमने उन्हें  बहुत अच्छा सबक सिखाया ईशा और हमें भी कि अन्याय को सहन करना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना अन्याय करना । गलत करने वाले के साथ गलती को प्रश्रय देने वाला भी
उतना ही गुनाहगार होता है । धन्यवाद ईशा ! हमारे दिलों में साहस जगाने के लिए ...हमारे चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने के लिए ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 12 February 2019

वसन्तोत्सव #

मदनोत्सव का असर हर शै पर दिखाई दे रहा था । पथ खूबसूरत पुष्पों  से सुसज्जित थे । टेसू के फूलों से आसमान दूर तक रंगे हुए दिखाई दे रहे थे । भौंरे मधुरस का पान करने के लिए फूलों के चक्कर काट रहे थे...प्रकृति के इस खुशनुमा वातावरण  के  साथ प्रत्येक जीव  खुशी मना रहा था । मन का उत्साह छलका जाता था ..शीतल , मंद पवन देह में सिहरन उत्पन्न कर रही थी ।थका -  हारा सूरज घर जाने की तैयारी में था , साँझ अबीर से ढकी नवयौवना सी सुन्दर  लग रही थी  । इस प्रेममयी वातावरण में भी राधा कृष्ण की उपेक्षा से दुःखी होकर मुँह फुलाये उपवन में  बैठी थी और कृष्ण  सब कुछ भूल  दोस्तों के साथ व्यस्त थे । गोपियाँ राधा को बुलाने आई थी पर राधा कहाँ  मानने वाली थी...एकांत में ही बैठी रही... जिसने नाराज किया उसे तो कोई फर्क नहीं पड़ा ।  हरसिंगार के फूल झरने लगे थे मानो किसी के लिए सेज तैयार कर  रहे हों । मधुमालिनी के फूलों से सुगन्धित शाम मादक  हो रही थी... आखिर कृष्ण को राधा की कमी महसूस होने लगी और उन्होंने अपनी बाँसुरी होठों पर लगा ली व छेड़ दी मधुर तान । प्रेम की धुन पर सब नृत्य करने लगे...लताएँ , पुष्प , शाखें , जीव - जंतु , चर , अचर सब  प्रेम की लय पर झूम उठे ।
राधा कब तक रोके  रखती अपने - आप को..दौड़ पड़ी कृष्ण की राधे - राधे पुकारती धुन की ओर....वृंदावन में प्रेम - रास चरम पर पहुंच गया था । आनन्द की मानो बारिश सी होने लगी चहुँ ओर...ऋतुराज वसन्त ने आकर रुख ही बदल दिया था संसार का...चाँद  अपनी किरणों  के द्वारा धरा को प्रेम  , उत्साह , खुशी से सींच रहा था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Thursday, 7 February 2019

पारस ( लघुकथा )


           रिया का अभी - अभी नागपुर ब्रांच में स्थानांतरण हुआ था । उसे बहुत अजीब लग रहा था यहाँ का माहौल...सब बँटे हुए से , अपने में व्यस्त ...किसी को किसी से मतलब नहीं । एक गुट बना था लेट आने व ढुलमुल कार्य करने वालों का और उनके प्रभाव या कहें दबाव के कारण जो सही लोग थे वे भी उन्हीं के जैसे बन गए थे  । वक्त की पाबंद रिया की आदत हर काम समय पर करने की थी , वह उनकी लाख टिप्पणियों के बावजूद अपना काम सही तरीके से करती रही । कर्म ही पूजा है यह सोच रखने वाली  रिया अपना काम ईमानदारी से करती रही । ब्रांच इंचार्ज बहुत खुश थे क्योंकि उन्होंने दूसरों को भी रिया के साथ  अनुुुशासित होते देखा । ऑफिस का माहौल बदलने लगा था  । हेड ब्रांच की नजर बहुत दिनों से इस ब्रांच पर थी क्योंकि इंचार्ज रिपोर्टिंग करते रहे थे । रिया को इस वर्ष का बेस्ट एम्प्लॉयी अवार्ड मिला तो बचे दूसरे लोग भी अच्छा काम करने में जुट गए थे । पारस के स्पर्श से लौह जैसी तुच्छ धातु स्वर्ण बन जाती है उसी प्रकार रिया के कार्य-व्यवहार ने अपने आस - पास के लोगों को बदल दिया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Sunday, 3 February 2019

# धुल नहीं जायेंगे पाप गंगा - स्नान से #

भारत की संस्कृति पावन  ,सरस , सुहानी ,
कई महावीरों की यह धरा सुनाती कहानी ।
राजपाठ , धन त्याग दिए  ईमान की खातिर ,
मोरजध्वज , हरिश्चन्द्र हैं जन -जन की जुबानी ।
माता - पिता को कांवड़ में  तीर्थाटन कराया ,
श्रवण ने  इस सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया  ।
शांति , अहिंसा , जीवदया का विश्व को संदेश दिया ,
बुद्ध ने यहीं से  विश्वशांति का उपदेश दिया ।
बच्चे की जान बचाने माँ प्रस्तुत हो शेर के आगे ,
उसकी ममता को देखकर पत्थर में प्रेम जागे ।
कबूतर को बचाने राजा शिवि अपना माँस दे देते ,
देवों की सहाय के लिए दधीचि अस्थिदान कर देते ।
शिवा ,प्रताप राष्ट्र की खातिर अपनी जान गंवाये  ,
देश की आन की खातिर वीरों ने गोली खाये ।
ऐसे देश में जन्म लेकर  अनमोल तन यह पाया ,
माता - पिता व राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया ।
यदि नहीं तो धुल नहीं जायेंगे पाप गंगा स्नान से ,
अपने कर्तव्य निभाओ ,आदर करो इनका सम्मान से ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़