Thursday, 7 February 2019

पारस ( लघुकथा )


           रिया का अभी - अभी नागपुर ब्रांच में स्थानांतरण हुआ था । उसे बहुत अजीब लग रहा था यहाँ का माहौल...सब बँटे हुए से , अपने में व्यस्त ...किसी को किसी से मतलब नहीं । एक गुट बना था लेट आने व ढुलमुल कार्य करने वालों का और उनके प्रभाव या कहें दबाव के कारण जो सही लोग थे वे भी उन्हीं के जैसे बन गए थे  । वक्त की पाबंद रिया की आदत हर काम समय पर करने की थी , वह उनकी लाख टिप्पणियों के बावजूद अपना काम सही तरीके से करती रही । कर्म ही पूजा है यह सोच रखने वाली  रिया अपना काम ईमानदारी से करती रही । ब्रांच इंचार्ज बहुत खुश थे क्योंकि उन्होंने दूसरों को भी रिया के साथ  अनुुुशासित होते देखा । ऑफिस का माहौल बदलने लगा था  । हेड ब्रांच की नजर बहुत दिनों से इस ब्रांच पर थी क्योंकि इंचार्ज रिपोर्टिंग करते रहे थे । रिया को इस वर्ष का बेस्ट एम्प्लॉयी अवार्ड मिला तो बचे दूसरे लोग भी अच्छा काम करने में जुट गए थे । पारस के स्पर्श से लौह जैसी तुच्छ धातु स्वर्ण बन जाती है उसी प्रकार रिया के कार्य-व्यवहार ने अपने आस - पास के लोगों को बदल दिया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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