Tuesday, 12 February 2019

वसन्तोत्सव #

मदनोत्सव का असर हर शै पर दिखाई दे रहा था । पथ खूबसूरत पुष्पों  से सुसज्जित थे । टेसू के फूलों से आसमान दूर तक रंगे हुए दिखाई दे रहे थे । भौंरे मधुरस का पान करने के लिए फूलों के चक्कर काट रहे थे...प्रकृति के इस खुशनुमा वातावरण  के  साथ प्रत्येक जीव  खुशी मना रहा था । मन का उत्साह छलका जाता था ..शीतल , मंद पवन देह में सिहरन उत्पन्न कर रही थी ।थका -  हारा सूरज घर जाने की तैयारी में था , साँझ अबीर से ढकी नवयौवना सी सुन्दर  लग रही थी  । इस प्रेममयी वातावरण में भी राधा कृष्ण की उपेक्षा से दुःखी होकर मुँह फुलाये उपवन में  बैठी थी और कृष्ण  सब कुछ भूल  दोस्तों के साथ व्यस्त थे । गोपियाँ राधा को बुलाने आई थी पर राधा कहाँ  मानने वाली थी...एकांत में ही बैठी रही... जिसने नाराज किया उसे तो कोई फर्क नहीं पड़ा ।  हरसिंगार के फूल झरने लगे थे मानो किसी के लिए सेज तैयार कर  रहे हों । मधुमालिनी के फूलों से सुगन्धित शाम मादक  हो रही थी... आखिर कृष्ण को राधा की कमी महसूस होने लगी और उन्होंने अपनी बाँसुरी होठों पर लगा ली व छेड़ दी मधुर तान । प्रेम की धुन पर सब नृत्य करने लगे...लताएँ , पुष्प , शाखें , जीव - जंतु , चर , अचर सब  प्रेम की लय पर झूम उठे ।
राधा कब तक रोके  रखती अपने - आप को..दौड़ पड़ी कृष्ण की राधे - राधे पुकारती धुन की ओर....वृंदावन में प्रेम - रास चरम पर पहुंच गया था । आनन्द की मानो बारिश सी होने लगी चहुँ ओर...ऋतुराज वसन्त ने आकर रुख ही बदल दिया था संसार का...चाँद  अपनी किरणों  के द्वारा धरा को प्रेम  , उत्साह , खुशी से सींच रहा था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment