मदनोत्सव का असर हर शै पर दिखाई दे रहा था । पथ खूबसूरत पुष्पों से सुसज्जित थे । टेसू के फूलों से आसमान दूर तक रंगे हुए दिखाई दे रहे थे । भौंरे मधुरस का पान करने के लिए फूलों के चक्कर काट रहे थे...प्रकृति के इस खुशनुमा वातावरण के साथ प्रत्येक जीव खुशी मना रहा था । मन का उत्साह छलका जाता था ..शीतल , मंद पवन देह में सिहरन उत्पन्न कर रही थी ।थका - हारा सूरज घर जाने की तैयारी में था , साँझ अबीर से ढकी नवयौवना सी सुन्दर लग रही थी । इस प्रेममयी वातावरण में भी राधा कृष्ण की उपेक्षा से दुःखी होकर मुँह फुलाये उपवन में बैठी थी और कृष्ण सब कुछ भूल दोस्तों के साथ व्यस्त थे । गोपियाँ राधा को बुलाने आई थी पर राधा कहाँ मानने वाली थी...एकांत में ही बैठी रही... जिसने नाराज किया उसे तो कोई फर्क नहीं पड़ा । हरसिंगार के फूल झरने लगे थे मानो किसी के लिए सेज तैयार कर रहे हों । मधुमालिनी के फूलों से सुगन्धित शाम मादक हो रही थी... आखिर कृष्ण को राधा की कमी महसूस होने लगी और उन्होंने अपनी बाँसुरी होठों पर लगा ली व छेड़ दी मधुर तान । प्रेम की धुन पर सब नृत्य करने लगे...लताएँ , पुष्प , शाखें , जीव - जंतु , चर , अचर सब प्रेम की लय पर झूम उठे ।
राधा कब तक रोके रखती अपने - आप को..दौड़ पड़ी कृष्ण की राधे - राधे पुकारती धुन की ओर....वृंदावन में प्रेम - रास चरम पर पहुंच गया था । आनन्द की मानो बारिश सी होने लगी चहुँ ओर...ऋतुराज वसन्त ने आकर रुख ही बदल दिया था संसार का...चाँद अपनी किरणों के द्वारा धरा को प्रेम , उत्साह , खुशी से सींच रहा था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 12 February 2019
वसन्तोत्सव #
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