ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ...
जिसने भींची थी उनकी उंगलियाँ ,
पहली बार अपनी मुट्ठी में और...
कराया था अपने वजूद का एहसास ।
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ....
जिसकी उंगली थाम पग - पग ,
उन्होंने चलना सिखाया था ।
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं....
जिनकी गर्माहट छू - छूकर ,
जागते थे वे सारी रात ...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जो मेला घुमाते वक्त ,
कस जाते थे उनकी हथेलियों में...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जिन्हें उसकी परीक्षा के पहले ,
थपकी देकर वे ढाढ़स बंधाते थे...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जो आज उन्हें नहलाते हैं ,
खाना खिलाते , दवा देते हैं..
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं....
मुँह से गिरती लार , जूठन को पोंछते ,
बीमार देह की बोरियत मिटाने ,
सहारा देकर टहलाते ये हाथ...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
अस्सी वर्ष पुरानी कैंसरग्रस्त देह ,
क्यों ढूँढती है वही जानी - पहचानी स्पर्श...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
जिनसे उनका कोई रिश्ता हो ,
कोई लेन - देन हो...
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं...
पर स्नेह की उष्णता लिए हुए ,
भले लगने लगे हैं...
पर इन हाथों को उन ...
हाथों ने ही उपलब्ध कराया ,
चंद रुपयों के बदले...
तीमारदारी करते ये हाथ...
न कोई रिश्ता न कोई अनुबंध ,
क्यों बसी इनमें प्रेम - गन्ध...
क्या रुपये चुका सकते मोल...
इस स्नेह - उपबन्ध का ,
अपने से लगने लगे है ये हाथ...
ये हाथ वो हाथ हैं...
जिस स्पर्श का इंतजार ,
करते रहे वे बरसों....
उनकी मृत देह का ,
अग्नि - संस्कार कर रहे ये हाथ...
पता नहीं क्यों आज ,
लग रहे अपरिचित से....
ये हाथ वो हाथ नहीं हैं ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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