संध्या अपनी सहेलियों के साथ जब भी कॉलेज जाने के लिए निकलती , चौक के पास खड़े लड़के भद्दे कमेंट्स करते , सीटी बजाते । लड़कियों का वहाँ से निकलना मुश्किल हो गया था परन्तु उनसे बहस करने या उनका विरोध करने से वे डरते थे । घर पर भी सबके माता - पिता यही कहते कि चुपचाप अपने रास्ते आया जाया करो वो लोग आवारा किस्म के लड़के हैं , उनसे लड़ने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वे सुधरने वाले नहीं हैं ।
संध्या के घर की पूजा में उसके चाचा शहर से अपने परिवार के साथ आये हुए थे । ईशा उसके चाचा की लड़की बहुत ही स्मार्ट लड़की थी , वह अपने स्कूल में बॉलीबाल की अच्छी खिलाड़ी थी और राष्ट्रीय स्तर पर कई बार खेलने जा चुकी थी । संध्या ईशा को अपने साथ घुमाने ले जा रही थी तो चौक में फिर उन्हीं बदमाश लड़कों से सामना हुआ और उनकी छीटाकशी सुननी पड़ी । ईशा को यह सब देखकर बहुत बुरा लगा...वह तो तुरंत उन्हें मुँहतोड़ जवाब देना चाहती थी पर संध्या ने उसे रोक दिया और जाते हुए उसे बताया कि यह तो उन्हें रोज ही झेलना पड़ता है । ईशा ने कहा - तुम लोग सभी सहेलियाँ मिलकर उन्हें सबक क्यों नहीं सिखाते या पुलिस थाने में उनकी शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराते । आजकल लड़कियों की सुरक्षा के लिए कितने सारे कानून बन गए हैं , पुलिस उन्हें एक ही दिन में सही कर देती ।संध्या ने कहा - चाहते तो हम सब भी यही हैं पर हमारे माता - पिता ही हमारे साथ नहीं हैं , वे ही हमें विरोध करने से मना करते हैं ।लेकिन संध्या , ऐसा करना तो उन्हें बढ़ावा देना है , आज वे सिर्फ अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं , कल किसी के साथ छेड़छाड़ भी करने लगेंगे तब ये जागेंगे क्या ? फोड़ा नासूर बन जाये उससे पहले उसका इलाज करना आवश्यक है । मंदिर से लौटते वक्त ईशा ने कुछ ठान लिया था ...फिर वहीं पहुँचने पर जैसे ही उन लड़कों ने उन पर टिप्पणियां करनी शुरू की , ईशा ठिठककर खड़ी हो गई...अपनी मुट्ठी बाँधते हुए उसने कहा- क्या कहा जरा फिर से कहना तो ! अचानक यह विरोध आने की उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी , कुछ देर के लिए वे ठिठके रहे । फिर उनमें से एक ने हिम्मत दिखाते हुए दादागीरी दिखाने की कोशिश की तो ईशा ने कसकर एक जोर का तमाचा उसके गाल पर लगा दिया । झन्नाटेदार चांटे के पड़ते ही उसका चेहरा देखने लायक हो गया । उसके साथ खड़े बाकी लड़के भी चुपचाप खिसकने लगे । ईशा ने उन्हें लगभग डाँटते हुए कहा - शर्म नहीं आती तुम्हें इस तरह की भद्दी टिप्पणियाँ करते हुए । कभी सोचा है कि किसी ने तुम्हारी माँ या बहन को ये सब कहा तो तुम्हें कैसा लगेगा ? कभी सोचा है कि यदि ये लड़कियाँ पुलिस थाने में तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगी तो तुम्हारे कैरियर का क्या होगा ? कहीं नौकरी मिलेगी तुम्हें ? कभी भी अपने सामने वाले को कमजोर मत समझना । वह लड़का सॉरी बोलकर चला गया ..
.वहाँ एकत्रित हुए लोग ईशा के साहस की प्रशंसा कर रहे थे । संध्या सोच रही थी काश ! यह हिम्मत हमने पहले दिखा दी होती तो इतने दिन घुट - घुट कर , डर कर नहीं रहना पड़ता । दो दिनों के बाद ईशा लोग चले गए । उसके जाने के कई दिन बाद संध्या ने ईशा को फोनकर अब उन लड़कों के सुधर जाने की खुशखबरी सुनाई और कहा- तुमने उन्हें बहुत अच्छा सबक सिखाया ईशा और हमें भी कि अन्याय को सहन करना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना अन्याय करना । गलत करने वाले के साथ गलती को प्रश्रय देने वाला भी
उतना ही गुनाहगार होता है । धन्यवाद ईशा ! हमारे दिलों में साहस जगाने के लिए ...हमारे चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने के लिए ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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