Saturday, 1 August 2020

गीत 19

आँखें भर आती हैं सब की , बेटी की विदाई में ।
टूटे हों तटबंध नदी के , बारिश की ढिठाई में ।।

सीप में पले मोती जैसे  , नाजों में पली बेटी ।
अंबर के तारों -सी झिलमिल , रस्मों में ढली बेटी ।
बढ़ी धान की बाली जैसी  , नेह की सिंचाई में ।
आँखें भर आती हैं सबकी बेटी की विदाई में ।।

घर- आँगन की चिड़िया वह , सभी कोनों में चहकी ।
बगिया के सुंदर फूलों -सी  , लगती वह सदा महकी ।
सूनेपन की पीर है  छलकी  , माता की रुलाई में ।।
आँखें भर आती हैं  सबकी , बेटी की विदाई  में ।।

सेतु बनी दो परिवारों की , शोभा आँगन की बनी ।
दो कुल की अभिमान बनी वह , प्यारी बनी साजन की ।
 खुशहाली के फल लद जाएँ , प्रीति की अमराई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी  , बेटी की विदाई में ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़





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