टूटे हों तटबंध नदी के , बारिश की ढिठाई में ।।
सीप में पले मोती जैसे , नाजों में पली बेटी ।
अंबर के तारों -सी झिलमिल , रस्मों में ढली बेटी ।
बढ़ी धान की बाली जैसी , नेह की सिंचाई में ।
आँखें भर आती हैं सबकी बेटी की विदाई में ।।
घर- आँगन की चिड़िया वह , सभी कोनों में चहकी ।
बगिया के सुंदर फूलों -सी , लगती वह सदा महकी ।
सूनेपन की पीर है छलकी , माता की रुलाई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।।
सेतु बनी दो परिवारों की , शोभा आँगन की बनी ।
दो कुल की अभिमान बनी वह , प्यारी बनी साजन की ।
खुशहाली के फल लद जाएँ , प्रीति की अमराई में ।।
आँखें भर आती हैं सबकी , बेटी की विदाई में ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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