आ जाबे गोरी तैं हर , सोलह सिंगार मा ।।
धान कस सुघ्घर हरियर तोर लुगरा हे ,
बादर कस करिया तोर आँखी के कजरा हे ।
ददरिया गाबो दुनो झन , बुता करत खार मा ।
आ जाबे गोरी तें हर , तरिया के पार मा ।।
लाली लाली चुरी पहिरे ,कनिहा करधनिया ओ ,
सुरुज असन दमकत हे ,माथे के बिंदिया ओ ।
झूम जाथे मोर जियरा ,पैरी के झनकार मा ।
आ जाबे गोरी तें हर , सोलह सिंगार मा ।।
तोर बोली कोइली असन , अब्बड़ नीक लगथे ,
नागिन सही तोर केश म , मोर नैन अरझथे ।
जिवरा हर मोर भेदागे , तोर नैन के कटार मा ।
आ जाबे गोरी तैं हर , सोलह सिंगार मा ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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