Friday, 3 July 2020

मद्धिम आँच ( लघुकथा )

आज सुबह से आँचल महसूस कर रही थी कि सासु माँ कुछ नाराज सी लग रही हैं । पति आशीष की ओर देखकर इशारों में पूछा - "बात क्या है ?" प्रत्युत्तर में उसने भी कंधे उचका दिये शायद इस बार उन्हें माँ से मिलने आने में देर हो गई थी । आँचल ने बात शुरू की  -  " मम्मी जी आपके हाथों के बड़े कितने अच्छे लगते हैं , मैंने बनाये थे तो कच्चे- कच्चे से  लगे "।  " अरे , तूने तेज आँच में जल्दी - जल्दी सेंक दिया होगा । चल आज दाल भिगा , तुझे बड़े बनाना सिखाती हूँ । " और शाम को  आशीष सास - बहू दोनों  को बातें करते हुए देख रहा था .....चूल्हे की मद्धिम आँच पर बड़े सिंक रहे थे , स्नेह और आदर की मद्धिम आँच में रिश्ते भी .. ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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