Tuesday, 14 July 2020

सिस्टम ( लघुकथा )

                 *सिस्टम ( लघुकथा )*
             धन और पहुँच के बल पर सदैव आगे-आगे रहकर आजकल वह बहुत बड़े साहित्यकार हो गये हैं । बड़ी - बड़ी महफिलों में शिरकत करते हैं , अखबारों में छपते हैं । कुकुरमुत्ते की तरह उग आये नव साहित्यकारों पर वह टिप्पणी कर रहे थे । पता नहीं कुछ लोग लिखते ही क्यों हैं , कुछ भी लिखेंगे और अपने पैसे खर्च कर किताब प्रकाशित करवाएंगे जिन्हें शायद वे स्वयं भी नहीं पढ़ते होंगे । पूरा सिस्टम ही दूषित हो गया है...कहते - कहते उनकी नजरें उन एक जोड़ी घूरती आँखों पर पड़ीं और झुक गईं...जिनकी सहायता से वे आगे बढ़े थे , जो उनसे कहीं अधिक प्रतिभाशाली  होकर भी  गुमनामी के अँधेरे में था क्योंकि वह सिस्टम को समझ नहीं पाया था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

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