गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।
बन गेहे सब्बो झन घर खुसरा
गली मोहल्ला हर सुनसान होगे ।।
चट चट जरथे हाथ गोड़
देह ले चुचुवावय पसीना ।
जीव जंतु पियासे मरत हे
पानी बिना जग सुन्ना ।
काबर रिसागे सुरुज देवता
हमरे करम ले तोर अपमान होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।
पेड़ कटागे माटी नन्दागे
सिरमिट म भुइँया बन्धागे ।
गमला म फूल लगाय बर
माटी ल तें खोजे जाबे ।
सुक्खा परगे तरिया नदिया
सुघ्घर खेत हर दइहांन होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।
हर हर झंझा चलत हे
कइसे बुता म जाबे ।
रुख राई कुछु नई दिखय
तें छईया कहाँ ले पाबे ।
बरसय नहीं भिनजोवय नहीं
बादर घलोक बईमान होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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