Sunday, 19 July 2020

जी हलकान होगे

तिपय भुंइया , जरत भोंभरा
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।
बन गेहे सब्बो झन घर खुसरा 
गली मोहल्ला हर सुनसान होगे ।।

चट चट जरथे हाथ गोड़ 
देह ले चुचुवावय पसीना ।
जीव जंतु पियासे मरत हे
पानी बिना जग सुन्ना ।
 काबर रिसागे सुरुज देवता
हमरे करम ले तोर अपमान  होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।

पेड़ कटागे माटी  नन्दागे
सिरमिट म भुइँया बन्धागे ।
गमला म फूल लगाय बर
माटी  ल तें खोजे जाबे ।
सुक्खा परगे तरिया नदिया
सुघ्घर खेत हर दइहांन होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।

हर हर झंझा चलत हे
कइसे बुता म जाबे ।
रुख राई कुछु नई दिखय
तें छईया कहाँ ले पाबे ।
बरसय नहीं भिनजोवय नहीं
बादर घलोक बईमान होगे ।।
गर्मी के मारे जी हलाकान होगे ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़








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