उन्होंने । पिता की आँखें तो बेटी के मन के घाव पढ़ लेती हैं ,यह चोट तो ऊपर से ही दिख रहा था ।
" बिटिया ! मैं जानता हूँ ससुराल व रिश्तों की मर्यादा तुम्हें सच कहने से रोक रही है पर तुम्हारे पति सुयश ने मनुष्य होने की मर्यादा भंग कर दी है इसलिए अब तुम्हें कोई और रस्म निभाने की आवश्यकता नहीं है । चलो बेटा , तुम अपने घर चलो ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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